किताब – ‘नौ मुलाकातें’ (उपन्यास)
लेखक – बृजमोहन
समीक्षक- ब्रजेश एमपी
विपरीत ध्रुवों पर खड़े हैं और मिलना चाहते हैं!
मैंने मन ही मन जोड़ा. इति से मेरी यह नौवीं मुलाकात होगी. चालीस वर्ष की अवधि में नौवीं मुलाकात! इससे पहले इति से जितनी मुलाकातें हुईं, अति भावुकता में हुई थीं. छोटी-छोटी मुलाकातें, लेकिन हर मुलाकात मेरे लिए खास थी और मेरी जिन्दगी में हलचल मचाकर गई थी.

इस तरह की रोमांटिक शुरूआत के साथ यह उपन्यास पाठकों को शुरू से ही बांध देता है. लेखक बृजमोहन वैसे तो सालों से विभिन्न साहित्यिक पत्र – पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहे हैं पर यह उपन्यास उनके लिए खास है क्योंकि उम्र के इस पड़ाव (65वर्ष) पर आकर लोग रिटायरमेंट की सोचते है वहीं उन्होंने प्रेम कथा को एक नया आयाम दिया है.
इस उपन्यास की सबसे बड़ी यूएसपी है उम्र के विभिन्न पड़ाव पर प्रेमी-प्रेमिका के बीच संवाद को उसी उम्र के अनुसार दर्शाना. और लेखक ने यह काम बखूबी किया है. दूसरी बात सारी कहानी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच घूमती रहती है जिससे कि इन राज्यों के पाठक इससे और जुड़ाव महसूस कर पाते हैं.
उपन्यास का नायक विकेस और नायिका इति दो विपरीत ध्रुवों के प्रतिनिधि है. नायक जहां थोड़ी बड़ी उम्र वाले कस्बाई संस्कृति के दबे – कुचले, शर्मीले और संकोची स्वभाव का है तो वहीं नायिका महानगरों की टीनएज में कदम रखती नवयौवना बर्हिमुखी और खुले दिमाग वाली लड़की है.
दोनों की पहली मुलाकात एक शादी के अवसर पर होती है. नायक पहली ही मुलाकात में उस बेपरवाह और बिंदास लड़की को दिल दे बैठता है. लेकिन उपन्यास में कई उतार – चढ़ाव आते हैं और अंत तक पाठकों की रुचि बनी रहती है. साथ ही साथ अन्य पात्र भी खूबसूरती से प्रस्तुत किये गये हैं. उपन्यास में अंत में क्या होगा उसको यहाँ बताने से रोमांच खत्म हो जायेगा.
पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी में इस तरह का उपन्यास नहीं आया है. इसका सधा हुआ कथानाक, सरल – स्पष्ट भाषा, कैरेक्टर से जुड़ाव और मध्य प्रदेश की पृष्ठभूमि इसे बेहद उम्दा उपन्यास बनाती है.
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मानव कौल के लिखे की सुन्दर समीक्षा की गयी है.
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