इस खूबसूरत सिटी के लोकल टूरिस्ट स्पॉट मैं पहले ही घूम चुका था. अब इस बार मौका था पुणे के आसपास की जगहों को खोजना, जहां अभी तक लोगों की नज़र ना पड़ी हो.
पुणे…महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी… मेरे दिमाग़ में पुणे शब्द सुनते ही जो पहला चित्र आता है वो है बाल गंगाधर तिलक का.
गणेश उत्सव को फिर से जीवित करने वाले, डेक्कन एजुकेशनल सोसाइटी के संस्थापक और अंग्रेजों के शब्दों में ‘फादर आफ द इंडियन अनरेस्ट’ या फिर हम उन्हें स्वदेशी आंदोलन के प्रणेता और इंडियन नेशनल कांग्रेस के गरम दल के नेता के रूप में भी जानते हैं. उन्हीं के प्रयासों से पुणे एक सांस्कृतिक राजधानी के रूप में अपनी अलग पहचान बना पाया.
शायद युवा इतना न जानते हो लेकिन मीडिया ने येरवदा जेल को ज़रूर फेमस कर दिया है जहां महात्मा गांधी से लेकर संजय दत्त तक रहे और मुंबई हमलों का साजिशकर्ता अजमल कसाब दफन हैं. खैर पुणे को ओशो के आश्रम और लियोफोर्ड कैफे के लिए भी जाना गया.
पुणे की ये मेरी ट्रिप दूसरी ट्रिप थी. पहली ट्रिप में लगभग सारी लोकल जगहों की थाह में ले चुका था. मुंबई से आते वक्त खंडाला और लोनावाला के दर्शन भी हो चुके थे. तो इस बार टाइम था कुछ नया एक्सप्लोर करने का.
इस खूबसूरत सिटी के लोकल टूरिस्ट स्पॉट मैं पहले ही घूम चुका था. अब इस बार मौका था पुणे के आसपास की जगहों को खोजना, जहां अभी तक लोगों की नज़र ना पड़ी हो.
हम तीन लोग थे शैलू भैया, डीजे और मैं. चूंकि 15 अगस्त को डीजे का बर्थडे भी था तो उसी दिन का प्लान घूमने के लिए हुआ. 14 को शैलू भैया आउट स्टेशन की कैब ऑनलाइन बुक कर दिए और टाइम दिया गया सुबह 07:30 का. सुबह समय से सब तैयार हो कर कैब का इंतजार करने लगे. लेकिन कैब वाला थोड़ा लेट हो गया. खैर डीजे और शैलू भैया का प्लान था कि अंबी वैली घूमने चला जाए.
बातचीत में कैब ड्राइवर ने बताया कि अंबी वैली से अच्छा है तम्हाणी घाट जहां खूबसूरत मुलसी डैम और छोटे-छोटे झरने मिलेंगे. हमने उसकी बात मान ली और वाकई उसने हमारी ट्रिप को मेमोरेबल बना दिया.
तम्हाणी घाट पुणे से 60कि.मी. की दूरी पर हरिहरेश्वर जाने वाले रूट पर है. अगर आप ट्रेवलिंग के बेहद शौकिन हैं तो हरिहरेश्वर भी जा सकते हैं जो कोंकण तट पर पड़ता है. इसे अपने मंदिरों के सुंदरता के लिए दक्षिण का काशी भी कहते हैं. हम तकरीबन 08 बजे पुणे को बाय कर दिये. पुणे में जगह-जगह दही हांडी के आयोजकों के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे. क्योंकि एक दिन पहले ही कृष्ण जन्माष्टमी थी. जैसे-जैसे हम तम्हिणी घाट की तरफ बढ़ रहे थे, हरियाली और पानी के झरने बढ़ते जा रहे थे.
ड्राइवर भैया बीच-बीच में इस एरिया की जानकारी भी दे रहे थे. उन्होंने ही हमें बताया की कौन सा रेस्ट्रां अच्छा है और किस झरने पर कम भीड़ होती है. इस दौरान कई जगह बाइकर्स के ग्रुप भी मस्ती करते दिखाई पड़ रहे थे. बाद में मालूम हुआ कि यह बाइक ट्रिप के लिए भी बेहद पसंदीदा रूट है.
तम्हिणी घाट लगभग 50 किलोमीटर के एरिया में फैला हुआ है. यहां सड़क के एक ओर सहयाद्री की हरियाली भरी भुजाएं थी तो वहीं दूसरी ओर मुलसी नदी, हरियाली के बीच में ही खूबसूरत से झरने. साथ ही हल्की-हल्की बारिश माहौल को रोमांटिक बना रही थी. ऐसा लग रहा था मानो हम स्वर्ग में आ गये हों. तकरीबन 20 किमी. चलने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी रोकी – क्विक बाइट (वेज रेस्टोरेंट) पर. यह मुलसी नदी से सटा हुआ है और खाना भी काफी टेस्टी था. यहां थोड़ा फोटोशूट तो बनता है.
क्विक बाइट में थोड़ी देर सुस्ताने के बाद गाड़ी आगे बढ़ी. जगह-जगह लोग झरनों में का आनंद ले रहे थे. यहां लगभग 40 झरने बारिश के मौसम में दिखाई पड़ते हैं और लवर्स के लिए तो मानो ये स्वर्ग ही था. कुछ जगह लोग बीयर का आनंद भी ले रहे थे. अब बारिश थोड़ा रुक गई थी. गाड़ी फिर ड्राइवर भैया ने रोक दी. यह जगह तीन पहाड़ों से घिरी थी और नीचे की तरफ पानी बह रहा था. खैर नीचे उतरने की इच्छा तो नहीं थी लेकिन बहुत खूबसूरत नजारा बन पड़ा था. यहां थोड़ा फोटोशूट किया और चाय की चुस्कियां से ख़ुद को तरोताज़ा किया. हम सबका मन झरनों को देख-देख कर ललचा रहा था पर ड्राईवर भैया के अनुसार आगे एक ज्यादा खूबसूरत झरना आने वाला था और वहां भीड़ भरे कम होती है. सो हम चुपचाप बैठे थे.
लगभग 10 कि. मी. चलने के बाद वो खूबसूरत झरना आ ही गया. गाड़ी को साइड में पार्क करके जंगल की छोटी पगडंडी को पकड़ कर आगे बढ़े. रास्ता बहुत पथरीला और फिसलन भरा था. फिर भी हम सावधानी से आगे बढ़ते रहे. क्योंकि झरने तक पहुंचने का रास्ता कठिन था इसलिए बहुत से लोग यहीं छोटे-छोटे झरनों पर इंज्वाय कर रहे थे. हम किसी तरह पत्थरों और पेड़ों को पकड़ते हुये झरने तक पहुंचे. और झरने के नीचे बैठ गए और यकीन मानिए जिंदगी में इससे ज्यादा आनंद कहीं नहीं है.
झरने का ठंडा पानी जब सिर पर पड़ रहा था तो सारी टेंशन काफूर हो गयी. फिर थोड़ी देर वही बहते पानी में हम पड़े रहे . हम वहां लगभग डेढ़ घंटा रहे और तीनों ने खूब सारे फोटो लिए. फिर अचानक से काले बादल छाने लगे और एक बार तो लगा कि खूब बारिश होगी. मोबाईल और कैमरा न भीग जाए इस चक्कर में फिर हम वापस गाड़ी की तरफ आ गये. लेकिन वापस आते ही मौसम वापस खुल गया. अब वापस ऊपर जाने की हिम्मत नहीं थी तो हमने पुणे का रुख किया.
तम्हिणी घाट पहुंचे कैसे –
पुणे से 60 और मुंबई से 180 किलोमीटर की दूरी पर है और बस, कैब आसानी से मिल जाती है. पुणे से यहां पहुचने के तीन रास्ते है. तीनों रास्तों की हालत एक जैसी हैं लेकिन कोरिगढ़ किला देखना हो तो अम्बी वैली वाला रूट लें.
क्या करें-
मानसून के मौसम में हरियाली और झरनों का आनंद ले. यहां से 70 किमी. दूर कुंडालिका नदी पर रिवर राफ्टिंग का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां से 117 किमी. पर हरिहरेश्कवर (कोंकण तट) स्थित है.
नेगेटिव –
वीकेंड पर ज्यादा भीड़ होती है. पब्लिक वाशरुम और चेंजिग रुम कम हैं. पेट्रोल और डीजल स्टेशन घाट में नहीं है. असामाजिक तत्वों से बच कर रहें.
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2 thoughts on “पुणे डायरी: जब कैब ड्राइवर ने ट्रिप को बना दिया यादगार”