असली महिष्मति – जो मध्यप्रदेश में है

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नर्मदा का कल-कल बहता पानी, काशी विश्वनाथ मंदिर और विश्व प्रसिध्द महेश्वरी साड़ियां – तो आप जान ही गये होंगे हम किसकी बात कर रहे हैं. चलिए नहीं जान पाए तो हम बताते हैं, आज की हमारी यात्रा का पड़ाव है महेश्वर. इसे प्राचीन काल में महिष्मती भी कहते थे. यह शहर न केवल भारतीय पर्यटकों बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी खूब लुभाता है.

इंदौर से महज 90 कि.मी. की दूरी पर ‘नर्मदा नदी’ के किनारे बसा यह खूबसूरत पर्यटन स्थल म.प्र. शासन द्वारा ‘पवित्र नगरी’ का दर्जा लिए हुए है. अपने आप में कला, धार्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व को समेटे यह शहर लगभग 2500 वर्ष पुराना है. 1950 में यहां खुदाई के बाद मालूम हुआ कि यहां पुराप्रस्तर कालीन से लेकर 18वीं सदी की संस्कृतियाँ रहीं हैं. सोचिये कितने काल इस शहर ने देख लिये.. ढाई हजार वर्ष और आज भी यह उतना ही आकर्षक है जितना उस समय रहा होगा.

महेश्वर मध्य प्रदेश के खरगौन ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर तथा प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. यह नर्मदा नदी के किनारे बसा है. प्राचीन समय में यह शहर होल्कर राज्य की राजधानी था. महेश्वर धार्मिक महत्व का शहर है और साल भर लोग यहाँ घूमने आते रहते हैं.

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मूलतः यह ‘देवी अहिल्या’ के कुशल शासनकाल और उन्ही के कार्यकाल (1764-1795) में हैदराबादी बुनकरों द्वारा बनायीं गयी ‘महेश्वरी साड़ी’ के लिए आज देश-विदेश में जाना जाता है. आज भी यहां ‘रेवा सोसाइटी’ के नाम से महेश्वरी साड़ियां बनायी जाती है जो कि किला परिसर में ही स्थित है और उन बुनकरों की कारीगरी आप देख सकते हैं. साथ ही यहीं से महेश्वरी साड़ियां खरीद भी सकते हैं.

किला परिसर में ही आपको खाने का एक अच्छा आप्शन लब्बू कैफे के रुप में मिलता है. महेश्वर के प्रिंस द्वारा इसे बनवाया गया है. जिसका इंटीरियर बहुत सिंपल और खूबसूरत है. किला घूमने के बाद यहां आप आराम से बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए सकून के पल गुजार सकते हैं.

अपने धार्मिक महत्त्व में यह शहर काशी के समान भगवान शिव की नगरी है, मंदिरों और शिवालयो की निर्माण श्रंखला के लिए इसे ‘गुप्त काशी’ कहा गया है. यहां नर्मदा तट पर स्नान को बहुत पवित्र माना जाता है. साथ ही किनारे पर लगभग 1001 पत्थर के शिवलिंग स्थापित किये गये थे. जिनमें से अब कुछ ही शेष बचे हैं.

देवी अहिल्याबाई होल्कर के कालखंड में बनाये गए यहाँ के घाट बहुत सुन्दर हैं और इनका प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी के जल में बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता है.

इतिहास-
इस शहर की स्थापना सोम राजवंश के राजा महाशमान ने की थी. महेश्वर प्रसिद्ध नगरों में से एक रहा है. निमाड़ और महेश्वर का इतिहास लगभग 4500 वर्ष पुराना है. रामायण काल में महेश्वर को ‘माहिष्मती’ के नाम से जाना जाता था. उस समय ‘महिष्मति’ हैहय वंश के बलशाली शासक सहस्रार्जुन की राजधानी हुआ करता था, जिसने बलशाली लंका के राजा रावण को भी परास्त किया था.pj

महाभारत काल में यह शहर अनूप जनपद की राजधानी बनाया गया था. सहस्रार्जुन द्वारा ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था. कालांतर में यह शहर होल्कर वंश की महान महारानी देवी अहिल्याबाई की राजधानी रहा.

प्राचीन नाम ‘माहिष्मति’
महेश्वर को प्राचीन समय में ‘माहिष्मती’ कहा जाता था. तब माहिष्मति चेदि जनपद की राजधानी हुआ करती थी, जो नर्मदा नदी के तट पर स्थित थी. महाभारत के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे सहदेव ने युद्ध में परास्त किया था.

लम्बा-चौड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेको सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखने वाला ‘किला’ इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है.

प्रमुख आकर्षण-
महेश्वर में लगभग 28 घाट हैं जिनमें से महत्वपूर्ण हैं अहिल्या-घाट, महिला-घाट, पेशवा-घाट और फण-घाट.

•नर्मदा घाट-
लम्बा-चौड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेको सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखने वाला ‘किला’ इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है. समय-समय पर इस शहर में मनाये जाने वाले तीज-त्यौहार, उत्सव-पर्व इस शहर की रंगत में चार चाँद लगाते है, जिनमे शिवरात्रि स्नान, निमाड़ उत्सव, लोकपर्व गणगौर, नवरात्री, गंगादशमी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती एवं श्रावण माह के अंतिम सोमवार को भगवान काशी विश्वनाथ के नगर भ्रमण की ‘शाही सवारी’ प्रमुख है.
घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमे से राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है. आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यहीं हुआ था.
• महेश्वर किला- यह 16 वीं शताब्दी का किला है और नर्मदा नदी से इसकी खूबसूरत वास्तुकला और शानदार दृश्य के लिए प्रसिद्ध है.
• एक मुखी दत्ता मंदिर- यह 30 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है जहां मंदिर क्षेत्र 10000 वर्ग फुट है.
• सहस्त्रुर्जेन मंदिर
• राजराजेश्वरी मंदिर
• लब्बूज कैफे
• रॉयल घाट
• अहिल्या माता का सेनोटैफ
• चिंतामणी गणपति मंदिर
• रेवा सोसाइटी
• नरसिंह मंदिर
• अहिल्याश्वर मंदिर
. नावदा टौली

घूमने के लिए सबसे अच्छा समय-
महेश्वर को साल में कभी भी घूमा जा सकता है, लेकिन यह अक्टूबर से लेकर मार्च के महीनों के दौरान बेहतरीन अनुभव होता है. इस वक़्त नर्मदा नदी का पानी सामान्य स्तर में रहता है, मार्च से जून के बीच यानी गर्मियों के दौरान यह थोड़ा असुविधाजनक हो सकता है. महाशिवरात्रि के दौरान यानी फरवरी से मार्च के महीनों के में यहाँ घूमना अच्छा रहेगा. इस दौरान भगवान शिव के कुछ मुख्य त्योहार पूर्ण आकर्षण में मनाए जाते हैं.

कैसे पहुँचें-
वायु सेवा- महेश्वर के लिए निकटतम हवाईअड्डा इंदौर है, जो 91 किलोमीटर की दूरी पर है और मुंबई, दिल्ली, भोपाल तथा ग्वालियर से सीधी विमान सेवा से जुड़ा हुआ है.

रेल सेवा- महेश्वर के लिए बड़वाह (39 किलोमीटर) निकटतम रेलवे स्टेशन है. पश्चिमी रेलवे के बड़वाह, खंडवा, इंदौर स्टेशन से भी यहाँ तक पहुंचा जा सकता है.

सड़क मार्ग- बड़वाह, खंडवा, इंदौर, धार और धमनोद से महेश्वर के लिए बस सेवा उपलब्ध है.

रहने के लिए आस पास कई विकल्प मौजूद हैं. जिनमें म. प्र. पर्यटन विभाग का नर्मदा रिट्रीट एक अच्छा विकल्प है.

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