मैं भारत के लगभग हर कोने में घूम चुका हूं लेकिन अपने प्रदेश की बात ही कुछ और है. मेरा पहला प्यार है- मेरा मध्यप्रदेश. जो खुश्बू इसकी मिट्टी में है वैसी मुझे और कहीं नहीं मिली.
अपने कुल ज़मीनी भाग के 31% में यहां वनों का राज है और अपने 10 नेशनल पार्क और 25 अभ्यारण्यों के साथ यह विभिन्न वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करता है. एक ओर अकूत वन संपदा है तो वहीं दूसरी ओर नर्मदा, चंबल, बेतवा, तवा के निरंतर प्रवाह से हरियाली और नगरों को नवजीवन मिलता है. वहीं खजुराहो, महेश्वर, ग्वालियर, मांडू, ओरछा इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं.
दोस्तों मध्य प्रदेश के बारे में लिखने को तो बहुत कुछ है लेकिन इसकी चर्चा बाद के लेखों में होती रहेगी फिलहाल हम आज के लेख में आपको भीमबेटका की यात्रा पर ले चलेंगे.
हमारी यात्रा शुरू होती है भोपाल से..
भीमबेटका जाने के लिए सबसे बढ़िया स्थान भोपाल है. यहां से भीमबेटका लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और आने-जाने के लिए बस और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. भोपाल से अब्दुल्लागंज तक आपको थोड़ा ट्रैफिक मिलेगा लेकिन फिर रोड़ पर भीड़ कम हो जाती
अगर आप चाहे तो अब्दुल्लागंज में कुछ देर रुक कर पूरन के गुलाब जामुन का स्वाद ले सकते हैं. वैसे ये रेस्ट्रां देखने में थोड़ा छोटा ज़रूर है लेकिन इनके गुलाब जामुन का स्वाद होशंगाबाद से लेकर नागपुर तक फेमस हैं. इस रोड़ की अच्छी बात यह है कि हाईवे पर आपको भीमबेटका का रास्ता दिखाने वाले कई साईनबोर्ड मिल जाएंगे.
इस होशंगाबाद रोड पर राईट साईड में आपको मप्र टूरिज्म का हाईवे ट्रीट दिखाई पड़े तो आप समझ लीजिएगा कि बस भीमबेटका आने ही वाला है. इस हाईवे ट्रीट पर रुक कर खुद को तरोताज़ा किया जा सकता है. हाईवे ट्रीट से लगभग 05 किलोमीटर की दूरी पर भीमबेटका रॉक शेल्टर हैं.
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भीमबेटका के बारे में सबसे पहले मैंने 2003 में पढ़ा था. उस समय न्यूज पेपर में आया था कि यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज साईट के रुप में मान्यता दी है. इन गुफाओं को खोजे जाने की कहानी भी बड़ी रोचक है. एक बार एक प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता यहां से ट्रेन से गुजर रहे थे. उनके मन में अचानक इन मिट्टी के टीलों को देखकर कुछ ठनका और उन्होंने ट्रेन से उतर कर उस जगह पहुंच कर खुदाई शुरु करवा दी. और खुदाई के बाद ये आदिम गुफाएं सामने आयी. और उस पुरातत्ववेत्ता का नाम था – डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर और वर्ष था- 1957-58.
यहां घूमने आने वालों के दिमाग में पहला प्रश्न आता है यहां घूमने क्यों आये? तो दोस्तों आपको बता दें कि यह स्थल विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का क्रीड़ा स्थल रहा है. यहां जिस तरह की चित्रकारी और कलात्मक अभिव्यक्ति दिखायी पड़ी है वैसी विश्व में बहुत ही कम जगहों पर मिली है. यहां मिले रॉक शेल्टर और शैल चित्र अद्भुत है. इन रॉक शेल्टर का निर्माण पुरापाषाण से मध्य पाषाण काल के मध्य हुआ है. जो कि लगभग 10,000 से 35,000 वर्ष पुराना काल है.
यहां 05 क्लस्टर में प्राकृतिक रॉक शेल्टर को बांटा गया है. जो कि लगभग 10 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हैं. जिनमें से पब्लिक के लिए कुल 12 रॉक शेल्टर ही खोले गये हैं. चित्रों को बनाने में लाल, गेरुआ, सफेद, पीला रंग भी प्रयोग किया गया है. जो आदि मानव की रंगों के माध्यम से अपनी जीवन शैली को दर्शाने का प्रयास है.
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इस बारे में अधिकतर रिसर्च करने वालों का मानना है कि इन चित्रों के माध्यम से हमारे पूर्वज एक दूसरे से कम्युनिकेट करते थे. जैसे इन चित्रों में सामूहिक नृत्य, शिकार, पशु-पक्षी, युध्द, कृषि कार्य, त्यौहार और दैनिक क्रिया-कलापों को दिखाया गया है. साथ ही ध्यान से देखने पर आप पायेंगे की इसमें आदि मानव के विकास को भी समझा जा सकता है. जैसे एक चित्र में पत्थर पर शिकारी बैठा है वहीं दूसरे चित्र में शिकारी घोड़े पर बैठा है.
अब बात करें इनके नामकरण की तो इनको विभिन्न आधार पर नाम दिया गया है. जैसे कि ज़ू रॉक को यह नाम इस शेल्टर के अंदर बने चित्रों के कारण मिला है जो कि विभिन्न जानवरों के है. वहीं बोर रॉक को इसकी वराह (बोर) जैसी आकृति के कारण यह नाम मिला है. प्रथम रॉक शेल्टर सभा गृह है जिसमें शायद चर्चाएं होती थी. यहां लगभग 750 रॉक शेल्टर है जिनमें 500 से अधिक चित्र हैं.
यह खूबसूरत जगह रायसेन जिले के रातापानी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी मे आती है. जिसमें एक तरफ विध्यांचल है वहीं दक्षिण में सतपुड़ा पर्वतमाला. इसकी एक और विशिष्टता है कि इसके आसपास के 21 गांवों की संस्कृति भीमबेटका की संस्कृति से कुछ समानता रखती है. अब अंत में बात करते हैं कि इसका नाम भीमबेटका क्यों पड़ा? तो जवाब मिला पुरानी किवदंती के अनुसार पांडव यहां कुछ वक्त रुके थे. और भीम के नाम पर इसका नाम भीमबेटका पड़ा. यहां पर भीम का एक प्राचीन मंदिर भी है.
भोपाल से अब्दुल्लागंज और वहां से भीमबेटका की ये यात्रा यहीं समाप्त होती है. इस समय शाम के लगभग 07 बजे चुके है और भोपाल यहां से 45 कि. मी. और होशंगाबाद 38 कि. मी. है. बाहर हल्की – हल्की बारिश हो रही है. हाइवे ट्रीट पर रुककर हमने चाय-पकोड़े ऑर्डर किये जिससे पेट को थोड़ी गर्माहट मिली है. हमने गाड़ी होशंगाबाद की ओर मोड़ दी है…
अगली कड़ी : वीकेंड में रिलैक्स करने के लिए ये है शानदार स्पॉट
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4 thoughts on “मध्य प्रदेश की वो ‘खास’ जगह जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं”