12 दिसंबर. तीसरा दिन.
तीसरा दिन एक तरह से आराम का दिन था. हम सिर्फ दो घंटे चले. एक आश्रम से दूसरे आश्रम की उम्मीद में.
रास्ते में मिलने वाला हर व्यक्ति हमें धीरे चलने और आराम से आगे बढ़ने की सलाह दे रहा था. चलना यात्रा का सबसे धीमा तरीका है. जब हम चलते हैं तो हम देखते हैं और बहुत कुछ परखते हैं.
गहराई में जाना जरूरी है हालांकि धीरे धीरे की सलाह सबसे अच्छी है. इस भौतिक संसार में हर कोई हमसे जुनून, जज्बात, महत्वाकांक्षा, सपने, उपलब्धियों और लक्ष्य के बारे में पूछता है.
सबकुछ जल्दी से पा लेने की होड़ में हमें जबरन भगाया जाता है. लेकिन इस धार्मिक नर्मदा सभ्यता में धीरे-धीरे और आराम से काम करना ही असल तरीका है.
कभी कभी थोड़ा लिखना भी बहुत होता है.
Somedays writing less is more.
Take it slow.
Take it easy.
नर्मदे हर!
सफ़रनामा
सफ़र का मज़ा कड़क चाय की चुस्कियों के साथ और बढ़ जाता है.
(नर्मदा की ये यात्रा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)
पिछली कड़ी:
नर्मदा परिक्रमा: जब रास्ता भटके और अंधेरे में एक आवाज सुनाई दी ‘नर्मदे हर
नर्मदा परिक्रमा: जुनून और रोमांच से भरा सफ़र ‘प्रोजेक्ट गो नेटिव’ के साथ
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16 thoughts on “नर्मदा परिक्रमा: एक आश्रम से दूसरे आश्रम की उम्मीद में…”