13 दिसंबर. दिन: 4. दोपहर के 2:45 बजे, चार घंटे चलने के बाद
मेरे चारों तरफ दूर-दूर तक फैले खेत हैं. जैसे बचपन में मेरी किताबों में पेंटिंग होती थीं जिसमें मैं ऐसे खेत देखता था. मेरे ठीक बगल में नर्मदा नदी है. सुबह से वो मुझे आकर्षित कर रही है. मैंने सुबह ही डुबकी लगाई है. उसका पानी थोड़ा हल्का और दूधिया है.
मैं नदी के सहारे कैटलीना और सचिन के साथ चार घंटे तक चलता रहा. हम कई बार नर्मदा को देखने के लिए रुके लेकिन किसी ना किसी तरह वो हमें करीब बुला लेती.
नीले आसमान में हल्के बादल हैं. इस सन्नाटे में कोई शोर नहीं है. धूप बहुत प्यारी है और हवा इतनी शानदार कि प्रकृति का हर पहलू नर्मदा की खूबियां बताता है.
मुझे कई तरह की चिड़ियां दिखीं जो मैंने पहले कभी नहीं देखीं. सभी एक-दूसरे से कहीं अधिक सुंदर और हैरान कर देने वाली. ये धरती मां का सही प्रतिरूप है. मैं भी एक चुनिंदा हूं जिसे ये सब अनुभव पाने का मौका मिला है.
हर बाबा/साधु/महात्मा/ध्यानी (सही सही कह पाना कठिन है) जिससे भी मैं मिला, वो सब एक ही
राह पर होने के बाद भी एक-दूसरे से अलग हैं. नर्मदा ज़िंदगी और उसके आगे के सफ़र का मूल है.
मुझे नदियों की सीख के बारे में पता है. गंगा ने मुझे बड़ी चीज़ सिखाई, शायद उसने मुझे नर्मदा के पास भेजा है.
मुझे नर्मदा से प्यार हो रहा है, धीरे-धीरे, ठीक वैसे ही जैसे हर किसी ने मुझे इसे अपनाने को कहा था.
नर्मदे हर!
एक आदिवासी महिला से मुलाक़ात
हमने एक अधेड़ महिला को देखा. घुटनों तक उसने साड़ी लपेट रखी थी. जिस तरह वो नंगे पैर, बेफिकर हो चल रही थी, इससे उसके ठेठ आदिवासी होने का अहसास हो रहा था. और वो थी भी.
काफ़ी दूर तक साथ चलते हुए उसने हमें नदी का रास्ता दिखाया. उसने सरकार को कोसा और उन लोगों को भी जो नदी को नुकसान पहुंचाते हैं, जो बांध बनाते हैं. उसने खुद को और अपनी जनजाति को जंगल और नर्मदा के बच्चे माना.
वो कभी नदी को नुकसान नहीं पहुंचा सकती और न ही नदी उसको. लेकिन उसे भरोसा है कि जिन लोगों के इरादे ठीक नहीं है, नर्मदा उन्हें नहीं छोड़ेगी.
उसने बांध बनाने और ‘विकास’ की सोच को लेकर जिस तरह बात की मैं हैरान था. ये सब किसके लिए है? ये वो सवाल है जो लंबे समय से मैं खुद से पूछता रहता हूं.
(नर्मदा की ये यात्रा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)
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5 thoughts on “नर्मदा परिक्रमा: घुटनों तक साड़ी पहनी नंगे पैर चलती वो महिला…”