16 दिसंबर. दिन: सातवां. डिंडौरी
अभी तक हमने 135 कि.मी.की दूरी पूरी कर ली है.
आज का दिन बहुत गर्म था फिर भी हमने 23 किमी की दूरी समाप्त की. यात्रा के पहले 6 किमी में तो हरियाली और पेड़-पौधों का नामोनिशान नहीं था. यह जगह चट्टानी और बंजर थी. आज की मजेदार बात यह रही कि रास्ते में हमने कृष्णमृग देखे. वो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के लिए पोज दे रहे हो. आज चलने से पहले मैं थोड़ा सूखा और निचोड़ा हुआ महसूस कर रहा था.
यात्रा शुरू करने से पहले हमने चार खुटिया गांववासी के साथ चाय पर घंटों बातें की. इनमें से अधिकतर कबीरपंथी थे और उन्हें उस ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी थी जो सामान्यतः दुर्लभ है.
वह बेहद सरल और शिष्टाचार से जीवन के विभिन्न विषयों पर बात कर रहे थे. और उनका सत्संग और सानिध्य पाकर मैं ख़ुद को धन्य समझ रहा हूँ.
यहां हर विचार की शुरुआत कबीर के दोहे से शुरू होती थी. यहां लोगों में अध्यात्मिकता पूर्ण रुप से समाहित थी और वे विचारों और कर्मों में एकरुप थे. उन्होंने बात करते-करते एक चिलम बनायी. ऐसी चिलम मैंने ज़िंदगी में पहली बार पी थी.
इन लोगों से मिलना और संवाद करना मेरी ज़िंदगी के याद रखे जाने वाले संवादों में से एक है. और सबसे बड़ी बात तो यह है कि परिक्रमा की अभी शुरुआत ही है और आगे न जाने कितने ऐसे ज्ञानी पुरुष मिलेंगे.
अब हम हाइवे पर चल रहे थे. और हर आने-जाने वाला हमारे बारे में जानने को उत्सुक था. क्योंकि हम दो अजीब दिखने वाले प्राणियों के साथ एक विदेशी महिला भी थी. कैटलीना आज हिंदी में ज़्यादा बात करने की कोशिश कर रही थी.
‘मेरा शरीर स्टील का बना है.’ – आज ऐसा महसूस हो रहा था. क्योंकि आज न कंधों में दर्द था न अन्य कोई तकलीफ. हां! दो छाले जरूर हो गये थे और लगातार बढ़ रहे थे. कैटलीना भी अच्छा महसूस कर रही थी. उसे अब छालों की आदत हो चुकी थी. उसे अभी तक दस से ज्यादा छाले हो चुके हैं.
वहीं सचिन ने आज चलने का नया स्टाइल खोज लिया. क्योंकि उसे आज पहला छाला हुआ था. शाम को 23 कि.मी.चलने के बाद डिंडौरी की सड़कों पर हम ऐसे लग रहे थे जैसे अभी-अभी पुलिस की हिरासत से छूट कर आये हो.
हम सूर्यास्त के बाद डिंडौरी पहुंचे थे. फिर हमने एक लॉज में रुककर ख़ुद को अच्छी तरह साफ किया. पिछले सात दिनों से हम नेचर्स कॉल के लिए जंगलों का इस्तेमाल कर रहे थे. और यह करना हमसे ज्यादा मुश्किल कैटलीना के लिए था.
हमने पिछले छह दिनों में खानाबदोश की तरह जीवन जिया. बाहर खाना बनाना, आग तापना, सांप और कृष्णमृग से मुलाकात हुई. साथ ही नर्मदा के किनारे पर नर्म ह्रदय और रोचक लोगों से मिले. अब हमें आराम के लिए एक अतिरिक्त दिन चाहिए ताकि हम अभी तक की यात्रा को आत्मसात कर सके. अब मुझे अपना जर्नल लिखने की आवश्यकता है क्योंकि और कहानियां जेहन में शोर मचा रही है.
नर्मदे हर!
(नर्मदा की ये यात्रा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)
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