हर शहर की अपनी खुशबू होती है, अपनी छाप होती है. नदियों, मैदानों, फसलों, फूलों, संस्कृतियों और विरासतों से आती ये खुशबू एक शहर की आत्मा का अभिन्न अंग होती है. और यही खुशबू हम पर्यटकों को उन शहरों के करीब खींचती है.
आज जिस शहर ने मुझे अपनी ओर खींचा है वो है – ग्वालियर. ऋषि गालव का नगर ग्वालियर, सिर्फ घुमक्कड़ों को मोहता ही नहीं है बल्कि सबके दिलों पर एक छाप छोड़ जाता है. मेरा मानना है कि ग्वालियर वो शहर है जो छूटता नहीं है, वह आपके मन के उस कोने में जाकर बस जाता है ,जहाँ से उसे दूर करना नामुमकिन है.
ग्वालियर छोड़ने के दो साल बाद, स्टीयरिंग व्हील फिर से ग्वालियर की ओर घूम गया. सुबह के छः बज रहे हैं और उस भीनी सी खुशबू ने नींद खोल दी है. शहर के बाहरी हिस्से में बने वो इंजीनियरिंग कॉलेज, गाड़ियों के शोरूम, शहर के अंदर बने और बसे वो पुराने घर , छोटी गलियाँ, चौड़ी सड़कें और ग्वालियर निवासी.
READ ALSO: एक मज़ाकिया, दिलचस्प और प्यारे संन्यासी का साथ
फूलबाग से गुज़रते हुए दूर किले के पीछे से सूरज उगता दिखाई दिया. वाह! क्या शानदार नज़ारा था! होटल में चेक-इन करने के बाद हम अपने उन दोस्तों से मिलने गए, जो ग्वालियर के ही होकर रह गए हैं. नाश्ता तो पहले से ही तय था कि एस.एस. कचौड़ीवाले के समोसे, बेड़ई, जलेबी खाना है, बस!
अपने पापी पेट की भूख शांत कर हम निकल गए अपने पहले पड़ाव की ओर जो था – ग्वालियर का किला!
ग्वालियर का किला, भारत में मशहूर और महत्वपूर्ण किलों में से एक है. भारत में फलने-फूलने और राज करने वाले राजवंशों और सल्तनतों का प्रमाण है ग्वालियर का किला. अद्वितीय वास्तुकला, विशालता, अपार सौन्दर्य और कुछ अनसुलझे रहस्य, ग्वालियर के किले को पर्यटकों की आँखों का तारा बना देते हैं. वहीं इसकी विशालता और अभेद्य सुरक्षा प्रणाली के कारण इसे जिब्राल्टर ऑफ इंडिया भी कहते हैं.
किले तक पहुंचने के लिए, हमने गाड़ी फंसने के डर से ग्वालियर-गेट का त्याग किया, जो कि शहर के बीचों-बीच था और ऊरवाई गेट से किले के भीतर प्रवेश किया.
READ ALSO: ”ऐसी चिलम मैंने ज़िंदगी में पहली बार पी थी”
किले के भीतर हमने घूमने की शुरुआत हमने दाता बंदी छोड़ गुरूद्वारे से की. सिखों के छठवें गुरु हरगोविंद सिंह जी की याद में बना ये गुरुद्वारा प्रतीक है बलिदान, प्रतिष्ठा और सामंजस्य का. कहते हैं गुरूद्वारे के नाम के पीछे की कहानी ये है कि गुरु हरगोविंद सिंह जी ने जहाँगीर से अपनी रिहाई के समय, पचास अन्य बंदी राजाओं को मुक्त कराया था. इसके अलावा अन्य कई कहानियाँ हैं. क्या बेहतरीन स्वच्छता का प्रबन्ध होता है गुरूद्वारे में! जूतों की रैक पर मेहनत करते स्वेच्छाकर्मियों और सिर पर रुमाल बाँधने वाले उन बुजुर्ग को देखकर समझ आ गया था कि गुरूद्वारे के अंदर कितनी शान्ति होगी. गुरूद्वारे की सुंदरता को अच्छे से निहारने के बाद , मन में एक अजीब सी शान्ति और आशा लिए हम आगे बढ़े.
मैं ख़ुशनसीब हूँ जो मेरी टोली घुम्मक्कड़ों से भरी है. तो हम यूँ ही घूमते- टहलते पहुँच गए उस जगह जो कुछ ख़ास थी. ख़ास इस मायने में कि ये वही तस्वीर है जो ग्वालियर-फ़ोर्ट सुनते ही दिमाग में चित्रित होती है. वो पीले पत्थरों से बनी ऊँची इमारतों पर नीले चित्र. यह नज़ारा जो हम सब अपनी आँखों में समेटने की कोशिश कर रहे थे, मानसिंह महल, मानमंदिर महल, भूलभुलैया या चित्त मंदिर कहलाता है. चार मंज़िला ये इमारत, कभी राजपूतों का महल थी तो कभी मुगलों का कारागार.
कलाप्रेमी राजा मानसिंह ने वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण इस भवन के रूप में अवतरित किया था. महल की दीवारों पर बनी कलाकृतियाँ, न सिर्फ इतिहास की झलक प्रस्तुत कर रहीं थीं बल्कि जीवन और संस्कृति से जुड़े विभिन्न पहलुओं को उजागर कर रहीं थीं. राजशाही मुहर, चीनी ड्रैगन, रुद्राक्ष, विजय पताका इत्यादि का चित्रण और तक्षण, संगीत समारोह आयोजित करने के लिए विशेष मंच. भूमिगत तल्ला एक अजीब सी मनहूसियत से भरा हुआ था. यहां खूँटे और बंदियों की कहानियों से घुटन हो रही थी.
हम जल्द ही बाहर निकले और किले में स्थित अन्य इमारतों और उनसे जुड़े इतिहास का मुआयना करने लगे. करण महल, तेली का मंदिर, जौहर कुण्ड, विक्रम महल और सनसेट पॉइन्ट, यह सब किले का हिस्सा होते हुए भी अपनी अलग अनूठी पहचान बता रहे थे.
READ ALSO: ”कम खर्चे में घूम सकते हैं ये 5 हिल स्टेशन”
डूबता सूरज और फैलता ग्वालियर शहर, बेहद खूबसूरत नज़ारा था ,हमारी आँखों के सामने. आज का आखरी पड़ाव था गूजरी महल ,जो राजा मानसिंह तोमर ने अपनी गूजरी रानी मृगनयनी के लिए ख़ास बनवाया था. ऐसा कहा जाता है कि रानी मृगनयनी ब्यूटी विद ब्रेन का अद्भुत उदाहरण थीं. गूजरी महल से निकलकर हम सभी लड़कियाँ बड़ा एम्पॉवर्ड महसूस कर रही थीं.
मेरा मानना है कि एक दिन काफी नहीं होता उस किले को देखने और समझने के लिए जिसने सोलह सदियाँ और न जाने कितने राजवंश देख डाले.ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी टाइम मशीन से पुराने जमाने में चले गए हो. खैर हम इस टाइम मशीन से उतरकर वापस होटल के लिए निकल गए. आज थकान हो गयी है सो रात को सोना है. कल के दिन सिंधिया राजवंश की विलासिता और जनकल्याण के दर्शन करने हैं. यानी जयविलास महल देखने जाना है. कल मिलते हैं फिर ,बाकी बचे आकर्षणों के साथ.
राइटर के बारे में –
शिवानी पेशे से बैंकर हैं. ट्रैवलिंग उनका जुनून है और दिल से वो खुद को राइटर मानती हैं.
(आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं. अपनी राय भी हमसे शेयर करें.)
हलो शिवानी!!!बहुत अच्छा वर्णन कियि है। लेखन एक कला है@@ प्रत्येक की अपनी भाषा शैली होती है;फिर black and white में किसी विषयवस्तु का वर्णन सहज नहीं है। भविष्य में भी आप अपनी शैली से हमें लाभान्वित करती रहे यही शुभकामनाएँ!!👍
LikeLiked by 2 people