ज़िंदगी में रोज हम अलग-अलग रंग देखते हैं. अलसाई सुबहें, जगमगाती शामें, गुलाबी ठंड, सर्द रातें तो कभी चांद की रोशनी में सुकून देने वाली ठंडी हवा का झोंका. ये सब कुछ हम देखते हैं, महसूस करते हैं और आगे बढ़ जाते हैं.
लेकिन ये सब तब और ख़ास होता है जब हम निकलते हैं घुमक्कड़ी पर. ज़िंदगी के असली रंग घुमक्कड़ी की उन पगडंडियों पर दिखते हैं जहां हम भटक रहे होते हैं कभी अकेले कभी पहाड़ों के घुमाव रास्तों पर किसी का हाथ थामे.
घुमक्कड़ी का रस भी मदहोश कर देने वाला है. मधुमक्खी की तरह आप एक फूल से दूसरे फूल यानी एक जगह से दूसरी जगह का लुत्फ लेते हैं और उनमें से जो फूल सबसे खूबसूरत होता है वहां ठहर जाते हैं, थोड़े से सुकून के लिए.
कुछ वक़्त सुस्ताने के बाद पक्षियों की तरह घुमक्कड़ी की उड़ान भरते हैं. फिर नए जंगलों, पहाड़ों और झीलों के किनारों पर पहुंचते हैं. वो ताज़ा हवा सुकून का ग्राफ़ बढ़ा देती है.
समंदर के किनारों पर कभी अकेले बैठेंगे तो सामने से आती लहरें आपकी ज़िंदगी की हक़ीक़त दिखाएंगी. सारे उतार-चढ़ाव, लहरों का शोर और फिर थोड़े से वक़्त के लिए शांति. सब कुछ उन लहरों में छिपा है. किसी का साथ हो तो समंदर के किनारे बेहद खूबसूरत हो जाते हैं. लहरों के साथ आने वाला ठंडी हवा का झोंका जो सुख देता है वो शायद कहीं और न मिले.
किनारे पर पड़ी नावें अकेली रह जाती हैं और उन पर सफ़र करने वाले आगे बढ़ जाते हैं. यही सच है. अंतिम सच. घुमक्कड़ी वो पागलपन है जिसमें या तो मन एक जगह पर ठहर जाएगा और बार-बार वहां आपको खींचेगा, या कहीं भी पहुंचने के बाद वो दूसरी जगह की ओर खींचेगा. असली मजा सफ़र में ही है.
सफ़र में साथी हो तो बात कुछ और होती है. कोई भी हो. डूबते सूरज को बिना पलक झपकाए देखना, तब तक, जब तक कि वो लाली दूर पहाड़ों के पीछे, समंदर के किसी छोर पर सिमट न जाए.
दुनिया दूर से जितनी रंगीन दिखती है. पास आने पर उतनी बेरंग. हालांकि फ़र्क नज़रिया का भी होता है. घुमक्कड़ी दरअसल इन्हीं बेरंग चीज़ों में रंग की तलाश करना है.
(तस्वीरें: #Birjugraphy)
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