आठवां दिन. पूर्ण विश्राम.
सात दिन तक लगातार नर्मदा परिक्रमा करते रहने के बाद अब हमें महसूस हो रहा था कि शरीर को साफ करने और अच्छा खाना खाने की जरूरत है क्योंकि इस सब के बाद आखिर में हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसके जरिए हमारी चेतना जीवित रहती है.
खैर इसका मतलब ये नहीं है कि हम 10 घंटे सोएं. मैं रोज सुबह 5 बजे बिना अलार्म के जाग जाता हूँ. मैं जल्दी जाग कर घाट पर योग करने चला गया. वहीं मैंने सूर्य पर ध्यान लगाया और कुछ बेहद खूबसूरत तस्वीरें क्लिक कीं.
मेरे लिए यह देखना बड़ा सुखद था कि यहां जीवन जल्दी शुरू हो जाता है और सुबह की जल्दी शुरूआत का ये मतलब नहीं है कि लोग मोटरबाइक लेकर भागे या अन्य काम करें बल्कि यहां वे पूजा-अर्चना, नर्मदा स्नान और ध्यान से अपने दिन की शुरुआत करते हैं.
यह पूरा वातावरण अत्यंत सकूनदायक और अंर्तमुखी है. सुबह के यह पल पवित्र – अध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है.
हम आज पूरे डिंडौरी में चर्चा का विषय बने रहे, विशेषकर कैटलीना के कारण. कई जगह लोगों ने सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत की. अच्छा था कि यहां कुछ भी विपरीत घटित नहीं हुआ.
यहां आने के बाद से अभी तक एक बार भी मैंने अपनी बांसुरी को छुआ नहीं. मैं इसे नहीं बजा पाने को मिस कर रहा था. मैं सोचता हूं कि जब मैं फिर से परिक्रमा में आगे बढूंगा तो इसे बजाऊंगा.
आज हमने अपने टेंट, कुछ किताबें, कपड़े वापस घर भेज दिये. क्योंकि हम उनका अब कोई इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे और वजन कम करने से शरीर को आराम मिलेगा.
आज हम 30 किमी. चलने की योजना बना रहे हैं. मैं पैदल चलने को मिस कर रहा हूं. ये वास्तव में जीवन बदल देने वाली औषधि है.
धन्यवाद डिंडौरी!
नर्मदे हर!
(नर्मदा की ये यात्रा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)
नर्मदा परिक्रमा की पुरानी कड़ियां:
ऐसी चिलम मैंने ज़िंदगी में पहली बार पी थी…
एक मज़ाकिया, दिलचस्प और प्यारे संन्यासी का साथ
घुटनों तक साड़ी पहनी नंगे पैर चलती वो महिला…
एक आश्रम से दूसरे आश्रम की उम्मीद में…
जब रास्ता भटके और अंधेरे में एक आवाज सुनाई दी ‘नर्मदे हर
नर्मदा परिक्रमा: जुनून और रोमांच से भरा सफ़र ‘प्रोजेक्ट गो नेटिव’ के साथ
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One thought on “नर्मदा परिक्रमा: जीवन बदल देने वाली दवा है ये…”