अकेली लड़की! कैसे करेगी ये सब! कुछ हो गया तो! शादी के बाद घूम लेना. अमूमन ये जुमला हर कहीं सुनने को मिलता है. पर मैंने बस तैयार कर रखा है कि अब कुछ किक चाहिए बॉस जिंदगी में.
पिछली क़िस्त- अकेले घूमने निकली लड़की के घुमंतू किस्से
लड़की का बैगपैक हो चुका है तैयार. एक बैकपैक, चंद कुछ रुपये, ढेर सारा आत्मविश्वास और कुलबुलाते से मन को लेकर मैंने अपने आप को मेंटली तैयार कर रखा है..
किसी भी चीज के लिए आपका मेंटली तैयार होना कितना जरूरी है इसका अंदाजा आप इससे ही लगा सकते हैं कि आर्मी में अधिकतर ट्रेनिंग जवानों को निर्णय लेने की क्षमता विकसत करने के लिए दी जाती है. मैंने खुद को तैयार कर लिया है आने वाली सारी दिक्कतों को अकेले फेस करने के लिए. अकेले सफ़र के लिए बेहतर है कि चेकलिस्ट बनाई जाए. ऐसे में जरूरी चीजों के छूटने का डर जरा कम हो जाता है. और जबकि मैं अकेले हूँ तो सावधानी तो रखनी है ही.
इस बात के लिए कि इस सफ़र में सब कुछ मुझे ही देखना है. अपनी सिक्योरिटी. बजट और अपने तमाम अच्छे बुरे अनुभव भी.
इन्हीं सब को मन में पुख्ता करते मैं नोएडा से करीब 1 बजे निकल गयी. नोएडा से नई दिल्ली जाने में लगभग 1 घंटे का वक़्त लगता है. मेरी ट्रेन तकरीबन 3 बजे है. मैं सेफ साइड लेकर चल रही हूँ.
मेरे बैकपैक का वजन लगभग 20 किलो होगा. नवम्बर के शुरुआती दिन होने के कारण ठण्ड वाले कपड़ों से बैग भरा है. दिल्ली में अगर कहीं जल्दी जाना है तो मेट्रो से बेहतर कोई विकल्प नहीं. मैंने मेट्रो बोर्ड कर लिया है. सीट मिली नहीं और अपने नीले बैकपैक को टांगों के बीच में दबाये बस मेट्रो की दिशा में बढ़े जा रही हूँ.
2 रातों से नींद ना ले पाने का असर साफ़ नजर आ रहा है मुझे. सब ‘झूम बराबर झूम’ वाली फीलिंग दिला रहे हैं.. पहली बार ऐसे जाने का असर ऐसा है कि लग रहा है लोग मुझे ही घूर रहे हैं. पर कोई बात नहीं. मैं बेहद खुश महसूस कर रही हूँ. मेरे बगल में खड़ा लड़का फ़ोन पर अपनी गर्लफ्रेंड को मना रहा है. वो उसकी वाइफ भी हो सकती है लेकिन भारतीय पुरुष आमतौर पर अपनी बीवी को इतने प्यार से नहीं मानते जितने खूबसूरत तरीके से वो लड़का फ़ोन के उस ओर की लड़की को मना रहा है.
मैं ये एकतरफा बातें सुन कर जरा और खुश हो लेती हूँ. तभी राजीव चौक के आने के अनाउंसमेंट से मैं वापस अपने बैकपैक को उठा कर ट्रेवल मोड में आ जाती हूँ.
दिल्ली रेलवे स्टेशन.
मुझे ना जाने क्यूँ दिल्ली रेलवे स्टेशन से जरा डर लगा करता है. प्लेटफ़ॉर्म यहाँ मुझे कंफ्यूज करते हैं शायद इसलिए या मैं बहुत कम ही इस रेलवे स्टेशन आई हूँ ये भी एक कारण हो सकता है. पर दिल्ली रेलवे स्टेशन पर होना बड़ा रोमांच से भरा लगता है मुझे.
खैर मैंने नाश्ता कर लिया है और और प्लेटफ़ॉर्म नंबर 9 में अपनी ट्रेन के इन्तजार में खड़ी हूँ. हाँ यहाँ लोगों की अजीब सी नजर मुझे घूरती समझ आ रही है. शायद मेरे साथ इस बड़े से बैग को देखकर और अकेला देखकर भी. मेरी ट्रेन हल्द्वानी जाएगी. हल्द्वानी से मेरी उत्तराखंड की यात्रा का शुभारम्भ होने जा रहा है.
मैं बहुत एक्साइटेड हूँ..
अब मुझे हर एक चीज पर बजट का भी ध्यान देना है. मैंने पानी की बोतल खरीद ली है साथ ही 2 पैकेट मीठे बिस्कुट भी. सफ़र के दौरान ये याद रखें की कुछ भी मीठा अपने साथ हमेशा कैरी करें ही. ये आपके ब्रेन के ग्लूकोस लेवेल को मेन्टेन करने में मदद करेगा.
ट्रेन लग चुकी है और मैं अपने सारे सामान के साथ अपनी सीट में आ गयी हूँ. मेरे ठीक सामने एक मुस्लिम कपल हैं.. आंटी ने बुरखा पहन रखा है. उन्होंने मुझे देखा तो मैं मुस्कुरा दीं. वो भी बड़े प्यार से मुस्कुरायीं. कितने प्यारे हैं हम सब और सबसे प्यारा है हम सब में हमारा मुस्कुराना. बस एक छोटी सी मुस्कान आपको अपनेपन का पूरा अहसास करा जाती है.
ये सभी शुभ संकेत हैं. मेरा सफ़र अच्छा जाने वाला है.
ट्रेन चलने को है. सामने वाली आंटी काठगोदाम जायेंगी. उनके पास सीताफल है जो कि उन्होंने मुझे भी खाने को दिया. अमूमन मैं किसी भी अनजान से खाने का सामन नहीं लेती पर सीताफल का प्रेम और आंटी का अपनापन ऐसा था कि मैं मना नहीं कर पाई.
कुछ यूँ ही बात करने पर जब आंटी ने मुझसे सवाल किया कहाँ जाओगी मैंने बताया कि हल्द्वानी.
आंटी: घर जा रही हो?
मैं: नहीं आंटी बस घूमने
आंटी: अकेले?
मैं: हाँ.
आंटी: अच्छा है! पहाड़ के लोग अच्छे होते हैं पर जरा सम्हल कर रहना.
मैं: ( मन ही मन खुश हुई कि चलो इन्होंने अकेली लड़की वाला ज्ञान नहीं दिया वरना आंटियों का आधा खून तो इसी में जल जाता है.)
मैं मुस्कुरा दी बस.
ट्रेन बढ़ रही है अपने ट्रैक पर आगे और मैं अपने मन के घोड़े यमुना की गन्दगी के ऊपर से दौड़ते जा रही हूँ. खलबली सी मची है जैसे क्या मैं सही कर रही हूँ? क्या मैं ये कर पाउंगी? अपनी डायरी के पन्नों में पुराने घूमने के यादगार किस्सों को दर्ज करते हुए मुझे याद आता है साथ घूमना. अकेले घूमना जितना आपको स्ट्रांग बनाता है. किसी ख़ास के साथ से ऐसे सफ़र में और रोमांच बढ़ जाता है. जब हर बीतते सेकंड के साथ दिमाग में एक नया किस्सा कुलबुलाता है.
इस सफ़र में निर्मल वर्मा भी मेरे साथ हैं. साथ की साथ है ‘एक चिथड़ा सुख’ भी. उत्तराखंड जाने के रास्तों में मैं जैसे इलाहाबाद को जी रही हूँ. अपनी डायरी में मैंने अपनी इलाहाबाद जाने की इच्छा को दर्ज कर डाला है.
दोपहर के 4 बजे शुरू हुआ ये सफ़र करीब 10.30 पर ख़त्म होगा. हल्द्वानी में जिनके यहाँ मैं रुकने वाली हूँ उनका किस्सा बड़ा मजेदार है. पर उस पूरे किस्से को अगली क़िस्त में बताउंगी.
लगभग 8 बज गए हैं. मुरादाबाद में ट्रेन 40 मिनट्स रुकती है. मुरादाबाद में ब्रेड पकोड़ा खाने के लिए लिया जो कि बेहद बेस्वाद था. उसे वैसे ही फ़ेक भी दिया. वापस फिर चाय पी और बाहर ही बैठी रही.
ट्रेन में इस्कॉन मंदिर वाले भी हैं, मुरादाबाद में उन्होंने पूरे प्लेटफॉर्म पर भजन गाया. सारी भीड़ उन्हें घूरती. और हरे रामा हरे कृष्णा गाते सभी झूमते. ये सब काफी अच्छा लग रहा था. मैंने वापस बाहर आकर चाय ली और प्लेटफॉर्म पर खाली जगह देखने लगी पूरे प्लेटफॉर्म पर भीड़ ज्यादा थी.
प्लेटफॉर्म पर लोग अजीब तरीके से घूरते मिले. ये इस लिए भी हो सकता है क्योंकि मैं 2 बार चक्कर लगा चुकी थी. आगे फिर एक आंटी के पास बैठने को जगह मिली. अकेले बैठे मैं उस ज्यादा मीठी और कम स्वाद वाली चाय को जैसे तैसे ख़त्म करती हूँ वो चाय भी उस ब्रेड पकोड़े की तरह बेस्वाद थी. साथ बैठी उन आंटी से जरा बात की तो पता चला वो लखनऊ से हरिद्वार के लिए जा रही हैं. उनका किसी और ट्रेन में टिकट था जो कि छूट गयी. उनके पति पुलिस में हैं इसलिए उन्हें आगे दिक्कत नहीं होगी.
इन सब के बाद ट्रेन में आ गयी मैं. D6 की अपनी सीट नंबर 60 पर. सामने वाली आंटी ने मीठी ब्रेड दी. पिज़्ज़ा बेस के शेप में मीठी सी ब्रेड थी. पहले तो मैंने मना किया पर बाद में खाया. टेस्टी थी.
रात के 10 बज चुके हैं. ट्रेन 30 मिनट लेट है. रुद्रपुर निकल चुका है. हल्दवानी से ऑटो कर के जाना है प्रियंका के घर (प्रियंका जिनके यहाँ मैं आज रात रुकने वाली हूँ) रिम्पी (प्रियंका की सहेली और मेरी भी) का कॉल आया था वो रुद्रपुर में हैं कल मैं मॉर्निंग में उन्हीं के साथ भीमताल जाउंगी.
अचानक से ज्यादा ठण्ड लगती है. विंडो सीट है, हल्की सी ऊपर होती है फिर हवा आती है तो बेहद कंपकपी लगती है. ऐसे में वाकई लगता है कि सफ़र में किसी का साथ होना कितना ज़रूरी होता है कभी-कभी. मैं सफ़र के साथी को जरा याद करती हूँ. सोचती हूँ कि इस वक़्त गर कोई साथ होता तो कैसे मैं जरा सिमट जाती साथी की ओर. खिड़की से आती ठंडी हवा से दूर.
रात करीब 11 बजे मैं हल्द्वानी पहुँचती हूँ. एक ऑटो वाले से बात होती है जिस जगह के लिए मेरी सहेली ने सिर्फ 20 रूपये देने के लिए कहे थे पर ऑटो वाला उसके लिए 150 रूपए मांगता है. बाद में काफी बहसबाजी के बाद वो 80 रुपये में तैयार भी हो गया. रात का वक़्त इन ऑटो वालों के लिए पीक रहता है ऊपर से मैं लड़की. ये मनमाना पैसा वसूल करने में नहीं झिझकते.
चलते वक़्त ऑटो वाले को मैंने एक कप चाय की पेशकश की. वो मान गया. बस स्टैंड के पास चाय पी जिसे पी कर एक अलग सुकून मिला. वाकई सफ़र का मजा तब दोगुना हो जाता है जब एक बेहतरीन चाय बढ़ती ठण्ड में थमा दी जाए. अपनी सेफ्टी का ध्यान तो रखना ही था ऑटो वाले का नंबर और रजिस्ट्रेशन नंबर मैंने अपनी सहेली को बता दिया था ही. रात 11.30 मैं पहुँचती हूँ अपनी सहेली प्रियंका के घर जिससे मैं करीब डेढ़ साल पहले ट्रेन में मिली थी.
बाकी अगली कड़ी में…
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Girls keep it up. We need to prove we can with stand any circumstances
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The power of women… 💙
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Great going ghumantu ladki
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Supr story yrrr।
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it is not only a write up but it is just like someones own experience…………….. well done………..
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लेखन की विधि उत्तम है, बोलचाल के शब्दों का अच्छा उपयोग किया है, विस्तृत विवरण देने का अच्छा प्रयास किया गया है.
एक अच्छे यात्रा वृतांत के लिये साधुवाद….
Keep it up….
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Girls have greater will power and tolerance, Except For physical strength . They can do any thing once determined .
Love and good wish to all the girls. You can do any thing in this world
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दिलचस्प और प्रेरक यात्रा संस्मरण।
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