10वां दिन. सक्का से चबी. 27 किमी.
मैं इस पोस्ट में आज के दिन की बातों को बताने के बजाए पिछले दिन की बात को आगे बढ़ाना चाहूंगा. पिछले दिन हम नर्मदा वासियों द्वारा की जा रही सेवा के बारे में बात कर रहे थे और साथ उनकी यह मान्यता कि ‘नर्मदा मैया हर परिक्रमावासी का ध्यान रखती हैं’ के बारे में जवाब ढूंढने की कोशिश मैं आज करूंगा.
भाव: मैंने कई नर्मदा वासियों से पूछा कि वो परिक्रमा करने वालों की इतनी सेवा क्यों करते हैं? इसका उत्तर एक चायवाले ने इस प्रकार दिया – “यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने सामर्थ्य के हिसाब से हर परिक्रमा वासी की सेवा करें. जो भी व्यक्ति नर्मदा परिक्रमा कर रहा है वो हमारे लिए पवित्र है. अगर वो व्यक्ति अपराधी और चोर है तो यह उसकी समस्या है.”
यही प्रश्न मैंने एक स्कूल शिक्षक से पूछा और साथ ही एक और प्रश्न जोड़ दिया कि -“लोग हमारे पैर क्यों छूते हैं?” उसने कहा, “मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहता है कि मैंने अपना जीवन नर्मदा के किनारे रहते हुये बीता दिया लेकिन कभी परिक्रमा नहीं कर पाया. इसलिए परिक्रमावासियों के पैर छूकर और सेवा करके हम नर्मदा मैया से माफी मांगते हैं.”
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उसने दूसरे प्रश्न के जवाब में कहा, “मैं पैर छूकर आपको नमन नहीं कर रहा हूं बल्कि जो तुम्हारे भीतर है उसको नमन कर रहा हूं.”
इस परिक्रमा पर आप जो भी इच्छा करेंगे वो नर्मदा मैया पूरी करेंगी.
यहां हर कोई यही बात कहता है. हर व्यक्ति की नर्मदा मे अगाध श्रद्धा है. फिलहाल मैं इस बात को लेकर निश्चित नहीं हूं कि यह सब लोगों की नदी के प्रति श्रद्धा से होता है या फिर नदी की लोगों के प्रति श्रद्धा से. खैर अभी मेरे कुछ अनुभव है जिन्हें मैं साझा करना चाहता हूं.
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पिछले दस दिनों में हमने कई चीजों की इच्छा की. पहले दिन हमने एक निजी कमरे की इच्छा प्रकट की और बदले में हमें अनगिनत तारों वाला कमरा और तापने के लिए जलती आग मिली.
एक दिन मैंने स्मोक करने की इच्छा जताई और बदले में हमें एक बाबा से गांजे का पूरा पैकेट मिला. फिर हमने भरपेट खाने की इच्छा की और वो भी पूरी हुयी. फिर हमने अपने टेंट वापस करने की इच्छा की और अगले ही दिन हमें एक कूरियर वाला मिल गया.
एक दिन हमने पूड़ी खाने की इच्छा की और उसी समय कोई हमें पूड़ी दे गया. एक दिन इच्छा हुई कि पूरे दिन भूखा रहा जायेगा और उसके अगले दिन हमें एक वक़्त का खाना ही मिला. और आज हमने एक कमरे की इच्छा की और हमें एक गेस्ट रूम मिल गया. और अभी जो हो रहा है वो समझ से परे है.
लोगों ने कहा कि हम बहुत भाग्यशाली हैं जो इतनी कम उम्र में हमें परिक्रमा का अवसर प्राप्त हुआ है. उनके अनुसार यह हमारे पूर्व जन्मों के अच्छे कर्मों का परिणाम है.
आज हमारी इच्छा थी कि हम अन्य परिक्रमावासियों से बात करेंगे और हमारी किस्मत देखिए की हमें तीन परिक्रमावासी मिल गये. जिनसे हमने घंटों बात की. हमारी हर इच्छा मांगने के साथ ही पूरी होती गयी. मैंने यह बात जब नर्मदावासियों को बतायी तो वे मुस्कुराते हुये बोले – “आगे-आगे देखो होता है क्या?”
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मुझे आज थोड़ा अपराधबोध महसूस हो रहा है क्योंकि आज मैं विश्वासपात्र तीर्थयात्री नही था. मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि नर्मदा नदी मेरी इच्छाएं पूरी करेंगी.
मुझे यह विश्वास था कि यह मुझे ज्ञान, शिक्षा देकर बुध्दिमान बनाएगी. लेकिन लोग इसे एक चमत्कारी माता मानते हैं. लेकिन मैं नहीं. मैं भविष्य को लेकर डरा हुआ हूं कि यह मुझे वो न बना दे जो मैं बनना नहीं चाहता. खैर, देवी -देवताओं पर मेरी मान्यता और विश्वास पर फिर कभी लिखूंगा.
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आज मैं यहां के लोगों के दयाभाव, प्रेम, विश्वास से खुश हूं. आज मुझे जिस परिवार ने भोजन दिया है उनको और उनके बच्चों को मैं अपने सारे अच्छे कर्म समर्पित करता हूं. क्योंकि मैं निश्चिंत हूं कि जो मैं कर रहा हूं उसका मैं अधिकारी नही हूं.
(नर्मदा परिक्रमा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ )
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बेहतरीन। नर्मदा परिक्रमा के शेष हिस्सों का इंतजार है।
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जी.. बाकि भाग जल्द ही अपलोड किए जाएंगे
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