11 वांदिन. चाबी से देवगांव, 25 किमी.
आज दोपहर के करीब एक बजे हमने दिन का दूसरा ब्रेक मोहगांव में लिया. हम चिलचिलाती धूप में लगभग सात किलोमीटर तक लगातार चलते रहे.
मैं हमेशा से ख़ुद को पुश करता रहता हूँ. लेकिन आज मुझ से ज्यादा कैटलीना मुझे खींच रही थी. वो आज एक फ्री सोल वाली देवी लग रही थी और आसपास के लोग उसके औरा में बंधे हुए मालूम पड़ रहे थे.
हम अपनी धुन में चले जा रहे थे. तभी अचानक एक बस हमारे पास आकर रुकी और एक आदमी दौड़ता हुआ हमारे पास आया. उसके पास आने पर पता चला कि यह वही स्कूल टीचर है जो हमें कल हर्रा टोला गांव में मिला था.
वह हमारे पास आकर बोला कि – “मुझे आप लोगों का एक फोटोग्राफ चाहिए, मेरी पत्नी आपको देखने के लिए बहुत उत्सुक है.”
कुछ समय बाद एक बाइक सवार हमारे पास रुका. वो बाइक से उतरा और कैटलीना के चरण-स्पर्श करने लगा. खैर अब कैटलीना इन सब की अभ्यस्त हो चुकी थी.
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इसके कुछ समय बाद एक और कपल हमें मिले जो हमारे दस मिनट ले गये. और इस दस मिनट के समय में उन्होंने कम से कम पचास फोटो हमारे साथ खींच डाले. मैं सोच रहा हूं कि लोग कभी-कभी अपनी इच्छाओं की पूर्ति चक्कर में दूसरों की निजता तक को भूल जाते हैं.
हम एक चाय की दुकान पर रुके तो दुकानदार ने हमसे पूछा कि – “एक दिन में कितना चल लेते हैं?” मैंने कहा – “औसतन पच्चीस किलोमीटर प्रतिदिन.” वह व्यंग करते हुए बोला – “फिर तो बहुत कम चलते हैं आप.” मैंने जवाब दिया – “हम यहां रेस करने नहीं आये हैं.” यह बात सुनकर उसकी पत्नी हल्के से मुस्करा दी लेकिन वो नहीं मुस्कराया.
एक और आदमी ने कहा कि यह आपका सातवां दिन होना था. सचिन ने जवाब दिया कि नहीं यह हमारा ग्यारहवां दिन है. उसके अनुसार हम काफ़ी धीमे चल रहे थे.
मोहगांव (शाब्दिक अर्थ – ‘मोह का गांव’) में आकर लग रहा था कि इस गांव का नर्मदा परिक्रमावासियों से कोई मोह नहीं था, जो कि अच्छा है. यहां हमारी अपनी निजता है. यहां कोई भी हमें घूर नहीं रहा था और न ही कोई बेवजह बात करने की कोशिश कर रहा था.
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मैं रोज गंगा के बारे में सोचता था. उसके हरे रंग और ठंडे स्पर्श को मैं विजुअलाइज करता था. आज मैं लगभग रोने को हो आया था.
ऐसा लग रहा था कि आनंद का ओवरफ्लो मेरे पेट से हो रहा था और लग रहा था कि नदियों के अवशेष मेरे आंसुओं के माध्यम से बाहर आना चाहते हैं. मैंने पहले इसे होने दिया फिर मुझे बैलेंस का पाठ याद आ गया और मैंने ख़ुद को नियंत्रित कर फिर से चाल पकड़ ली.
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देवगांव यहां से आठ – दस किलोमीटर की दूरी पर है. अब हम फिर से चमत्कारिक नदी नर्मदा को देख रहे हैं.
मैंने आज उससे खूब सारी बातें की. उसके बिना बिताये तीन दिनों में मेरे अंदर काफी डर समा गया था. ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी बिछड़ी प्रेमिका से मिलने जा रहा हूं.
(नर्मदा परिक्रमा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ )
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