सुबह 10 बजे भीमताल. कड़कती ठंड में जब सुबह नींद खुलती है तो बस वापस सर ढक के सो जाने का मन करता है. भीमताल में भी ऐसा ही हुआ. नींद जो देर रात लगी थी उसे 6 बजे खोलना ही था. ताकि बिना देरी किये अगले पड़ाव पर जा सकूँ.
रिम्पी को जगाने के साथ ही मैं वापस रजाई में घुस गयी. ऐसे जैसे हमेशा से मैं यहीं रही होऊं. पर उठना तो था. आलस को कई बार कह कर कि बॉस आज नहीं, मैं उठ ही गयी.
रात के लज़ीज डिनर के बाद अब ब्रेकफास्ट की बारी थी. पिछली रात को मैं और रिम्पी बन ले आ गए थे कि सुबह बन मक्खन और चाय पी कर निकल जायेंगे. एक और मजेदार अनुभव के लिए. रात में रिम्पी ने मेहमान नवाज़ी में बड़ा टेस्टी खाना खिलाया था तो सुबह मैंने किचन का जिम्मा ले लिया.
अब भीमताल का जो वाक़या मुझे याद है और जो सबसे गुदगुदा जाता है वो ये है कि मैंने इस दिन के पहले कभी भी बन मक्खन नहीं खाया था. हाँ नाम बहुत सुना था. तारीफ़ भी बहुत सुनी थी. पर कभी ट्राई नहीं किया. मैंने कभी इसे बनते भी नहीं देखा था तो ये अलग ही कहानी हो गयी थी. तो जो काम मैंने इस बन मक्खन के साथ किया था अगर बन मक्खन की कोई सोसाइटी होती तो उस वक़्त मेरे खिलाफ प्रोटेस्ट चालू हो चुका होता.
मैंने चाय तो बना ली और अपनी बुद्धि का पूर्ण इस्तेमाल करके बन भी बना लिया. जब नाश्ता करने की बारी आई तो रिम्पी और मैंने प्रार्थना की और टूट पड़े चाय की ओर. रिम्पी के नाश्ते का सारा एक्साइटमेंट हवा होने में मात्र 3 सेकंड लगे थे और मैं मजे में अपना बनाया बन मक्खन खा रही थी. अब मैंने तो बन मक्खन खाया था नहीं पहले तो मुझे नहीं लगा कुछ भी.
दरअसल मैंने बन को ऊपर और नीचे से सेंक दिया था अंदर से बन ठंडा था और मुझे तो पता था नहीं कि बन भाईसाब को बीच से काट कर मक्खन भी भरना होता है. मैंने रिम्पी की ओर देखा जो कि मुझे पहले से देख ही रही थी. मेरे सिक्सथ सेंस ने चीख-चीख कर कहा, बेटा आस्था तुम फिर से कुछ तो कांड कर दी हो.
मैंने बड़े प्यार से सवाल किया ‘अच्छा नहीं बना क्या?’ रिम्पी ने बोला ये बना ही नहीं है. उस दिन जिस शर्मिंदगी से फिर मैंने बन मक्खन बने आधे बन को चाय के साथ नजरें झुका कर खाया था वो याद करने में आज भी बड़ी गुदगुदी होती है.
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खैर, ये सब तो हो गया अब आज हमको जाना था एक गाँव. टिपिकल पहाड़ी गाँव. नाश्ता ख़त्म करने के बाद रिम्पी ने उठाई गाड़ी और हम झूमने लगे पहाड़ों की नशीली हवाओं के बीच. गोल घूमते रास्ते. अचानक से पड़ती सूरज की रौशनी की गरमाहट. ठंडी हवाओं का झोंका. जंगलों की वो भीनी सी खुशबू. घुमावदार रास्तों में बाइक के घूमने के साथ मेरे हाँथ हवा में लहराते और घूम जाते.
जब मन उन ठंडी हवाओं से भर ही नहीं पा रहा हो जैसे.
हम बीच में कहीं रुकते और रिम्पी फ़ोन में बात करतीं. उस दौरान मैं पहाड़ों की उस नशीली सी हवा में ज़रा और जीती. पूरा दम भर कर सांस लेती और एक अलग ही जोन में निकल जाती. जिस वक़्त दिल्ली में स्मॉग ने हाहाकार मचाया हुआ था उस वक़्त मैं इन खूबसूरत से लम्हों को जीते हुए अपने होने का शुक्र मना रही थी.
अगला पड़ाव था जंगलिया गाँव
रिम्पी को इस गाँव में कुछ काम था. मैंने उनके इस काम का पूरा फायदा उठा लिया.
भीमताल हॉस्पिटल के अंडर में जो गाँव आते हैं उनमें से जंगलिया गांव भी एक है. इसी गाँव में आशा कार्यकर्ता लक्ष्मी जी हैं. जो कि पिछली रात उस महिला को लायी थीं जिनकी डिलीवरी में काफी वक़्त लगा था. लक्ष्मी जी और उनके पति भूपाल सिंह इस गाँव में करीब 40 साल से रह रहे हैं. उनके दादा पिता भी यहीं रहते थे.
पूरे रास्ते मैंने कई सारे नए बनते हुए रिसॉर्ट्स और होटल्स देखे. मैंने भूपाल जी से पूछा इस बारे में तो उन्होंने बताया कि ”दिल्ली वाले लोगों के हैं इनमें से अधिकतर रिसॉर्ट्स. उत्तराखंड के नौकुचियाताल में तो अमिताभ बच्चन की भी प्रॉपर्टी है.”
भूपाल जी के घर पर ढेरों पकवानों से आव-भगत हुई हमारी. खाना खा कर बहुत मजा भी आया. उन्होंने और उनके बेटों ने बहुत बात की मुझसे. मैंने भी उनसे कसार देवी और उत्तराखंड के बारे में ढेर जानकारियां लीं.
उनके 3 बेटे हैं जो दिल्ली में रहते हैं. छोटी जगहों के लोगों का रुख महानगरों की ओर ऐसे में ज्यादा बढ़ा है. उनके बेटे रेस्तरां में काम करते हैं और सर्दियों में फसल के वक़्त गांव आते हैं. खुशकिस्मती से मैं सबसे मिल ली.
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Bahut khoob
Keep writing ✌🏻
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Ghumantu ladki ka agla nishana kya hai?
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Thought in mind coming because you r able to convey message of Nature to is. Keep going to explore ur journey
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