मार्कण्डेय आश्रम से सूर्यकुंड आश्रम
(दिन – 13 वां)
नोट – इस लेख को 14 वें दिन की सुबह लिख रहा हूं.
समय – 5.30बजे
दूरी – 05-06 किमी

आज के दिन की शुरुआत चाय की खोज के साथ हुयी. चाय के साथ आज काफी दिन बाद ब्रेकफास्ट भी मिला. और ऐसे माहौल में ब्रेकफास्ट मे मिला पोहा भी किसी स्वादिष्ट व्यंजन से कम नहीं लगता. हमने दो बार पोहा और चाय पी. फिर हम तीनों को हल्का होने की इच्छा हुयी. इसके लिये हम जंगल की ओर चल पड़े. फिर सब अपने अपने स्थान चुनकर बैठ गये. यह बड़ा मजाकिया लग रहा है पर ये सच है कि अगर हमारे बीच से आरामदायक और भौतिक चीजें निकाल दी जाएं तो हम एक दूसरे के बहुत नजदीक आ जाते हैं

ALSO READ : भूटान की एक झलक
इसके बाद हमने नर्मदा मे डुबकी लगायी. और मैंने थोड़ी देर योग किया. मुझे विभिन्न घाटों पर योग करने मे मज़ा आता है. योग के बाद मैं कुछ देर बांसुरी बजाता रहा. इस दौरान मुझे देवगांव संगम आश्रम के म्युजिक सेशन याद आ गये. मैं बांसुरी मे डूबा था वहीं सचिन कुछ लिखने मे व्यस्त था. और कैटलीना ख़ुद को और अच्छी तरह से साफ करने मे जुटी थी. जब कैटलीना घाट पर यह सब कर रही थी तब कुछ महिलायें उसका मज़ा लेने के लिए कमेंट कर रही थी. एक कह रही थी ‘आप पूरी डुबकी क्यों नही लगा रही है?’ दूसरी ने कमेंट किया ‘वो इस तरह हर बॉडी पार्ट को अलग अलग क्यों धो रही है?’ एक और ने कहा ‘इस तरह कपड़े क्यों बदल रही है?’ मैंने कैटलीना को सलाह दी कि वो हिन्दी न जानने का बहाना बनाये. क्योंकि अगर कैटलीना हिन्दी बोलने लगी तो उन सबकी बोलती बंद हो जायेगी.
इसके बाद हम आश्रम आ गये. अपना खाना पकाया. तब तक वहां एक बाबा और आ गये थे. यह वही बाबाजी थे जिनसे हम दो दिन पहले मिले थे. हम सब ने साथ में खाना खाया. फिर अगले पड़ाव की ओर चल पड़े.

हमे परिक्रमा शुरु करते करते दोपहर के तीन बज गये. हम अभी एक नहर के किनारे किनारे चल रहे थे. रास्ते में हमने कई गांव भी पार किये.हमें एक जगह एक पपी दिखाई पड़ा. वो बीमार दिख रहा था और ठंड से कांप रहा था. शायद उसके मालिक ने बिमार होने के कारण उसे छोड़ दिया था. हमने उसे बिस्किट खिलाये तो उसने बड़े चाव से खाये. फिर उसे पानी पिलाया. लेकिन वो बहुत ही कमजोर लग रहा था. हम वहां करीब 20 मिनट रुके रहे. तब तक उसने कुछ ताकत पा ली. वो चलकर हमारे पास आया और बैठ गया. इसके बाद हमने बचे हुये बिस्किट गांव के एक बच्चे को दिये और उससे नर्मदा मैया का नाम लेकर वादा लिया की वो पप्पी को बाद में आकर खाना खिलायेगा. बच्चे ने कहा कि वो स्कूल से आकर उसका ध्यान रखेगा. मुझे आशा है कि वो पप्पी अब ठीक हो गया.
हम आश्रम में शाम को थोड़ी देर से पहुंचे. हम चारो ने बैठकर गप मारी,चिलम पी और बांसुरी बजायी. ठीक इसके बाद एक आश्रम वासी आया और हमसे खाने के बारे में पूछा. और हमेशा की तरह आज भी हमारे पास खाना नहीं था. हमें मालूम हुआ कि आज किसी के घर में जाकर खाना मांगना पड़ेगा. यह हमारे लिए पहली बार था कि हम किसी के घर के सामने खड़े हो कर खाना मांग रहे थे. उस परिवार ने हमसे कुछ प्रश्न पूछे, हमारी निगाह नीची थी. क्योंकि हमारे पास न बर्तन थे और न ही खाना बनाने का सामान. (लेकिन आगे से हम ये दोनों चीजें साथ रखेंगे)

खाना बनाते वक्त हमें लगा कि हमे रोटी खाने की इच्छा है. बाबाजी भी रोज – रोज खिचड़ी खा कर पक चुके थे. तो खाना बनाने की तैयारी शुरु हुयी. मैंने आटा गुंथना शुरु किया. घर की ही एक आंटी मुझे और कैटलीना को रोटी बनाना सीखने लगी. वो महिला रोटी बनाने मे निपुण थी और हम दोनों उनके परफेक्ट स्टूडेंट. वहीं बाबाजी ने लकड़ी की आग पर रोटी बनाना सिखाया. बाबाजी का कहना था कि अगर परिक्रमा पूरी करनी है तो हम लोग को सिर्फ चावल नहीं बल्कि रोटी भी खानी चाहिये. और खाना बनाना सीख लेना चाहिये. इस ज्ञान के बाद अब खाने की बारी आई है. आज हमारे पास खाने में रोटी, आलू की सब्ज़ी, खिचड़ी और गुड़ है. हर खाने के बाद मुझे महसूस होता है कि खाने का हमारे जीवन में कितना महत्व है. और हम कई बार हम खाने को यूं ही वेस्ट कर देते हैं.
खाने के बाद हम कुछ देर बैठ कर बातें करते रहे. फिर सोने के लिए चल दिये. मौसम थोड़ा ठंडा था. हम रात भर उलटते पलटते रहे. सुबह के पांच बज गये और यह मेरे उठने का समय होता है. रात की नींद की परवाह किये बगैर मैं उठा. अपनी शॉल सचिन को और स्लीपिंग बैग कैटलीना हो ओढ़ा दिया ताकि उनको कुछ गर्माहट महसूस हो और ख़ुद को योग से गर्म करने के लिए चल पड़ा.
नर्मदे हर!
(नर्मदा परिक्रमा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)