क्या नर्मदा मैया कोई संकेत दे रही थीं?

घाघी से बुडेरा

( दिन – 16 वां )

दूरी : 15 कि.मी.


कल रात हम अधखुले कमरे में सोए. बाहर की हवा ऐसे लग रही थी जैसे किसी ने शर्ट के अंदर ठंडा पानी डाल दिया हो. लेकिन जैसा हमेशा होता है वैसे ही यह रात भी गुजर गयी और सुबह हम जल्दी जाग गए. उसके बाद काॅफ़ी का दौर चला. जिस आश्रम में हम ठहरे हुए हैं उसकी सबसे अच्छी बात थी कि यहां बाबाजी ने हमारे साथ सब कुछ शेयर किया – चाहे वो काॅफ़ी हो या खाना. मजाक – मजाक में उन्होंने यह तक कह दिया कि कहीं हम उनको विदेशी ना बना दें. फिर हमने ब्रेकफास्ट में डेट हनी (खजूर से बना सिरप), टहीना (तिल का पेस्ट), सूजी और ड्रायफ्रूट्स खाए. ब्रेकफास्ट जल्दी खत्म करके अब हम आगे की यात्रा के लिए तैयार थे. आश्रम वाले बाबाजी हमें मुख्य सड़क तक छोड़ने आए और लगभग 09.30 बजे हमने चलना शुरू किया.

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हम बिना रुके लगभग चार घंटे तक चलते रहे. फिर हमने 10 मिनट का ब्रेक लेकर थोड़ा आराम किया. अगले चार घंटे हम फिर लगातार चलते रहे. अब बारह बज चुके थे और हम लगभग 10 कि. मी. या उससे कुछ ज्यादा की दूरी तय कर चुके थे. फिर हम एक चाय-समोसे की दुकान पर रुक गये. वहां एक ग्रामीण ने गाय के गले में बांधने वाली घंटी गिफ्ट में दी. लेकिन मैंने आग्रह किया कि इसके बदले में उसे कुछ पैसे दे देने चाहिए. और मोल-भाव के बाद डील 100 रु.में तय हो गई.

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मौनी माता आश्रम

यह आश्रम आराम, सुविधाओं और जगह के मामले में अन्य आश्रमों से बहुत बेहतर था. अभी तक जितने भी आश्रमों मे हम रुके थे उनमें से यह सबसे बढ़िया था. यहां साफ-स्वच्छ रुम, टाॅयलेट थे और रुम में सारी चीजें करीने से रखी थी. दूसरी बात यहा के बाबा ने कभी भी हमारी बातों मे दखल नही दी. बल्कि उन्होंने साथ बैठकर काॅफ़ी पी.
यहां रात बहुत ठंडी थी. हममें से कोई भी ठीक से सो नही पाया. लेकिन हम आश्रम से नर्मदा के दर्शन से अमेज्ड थे. यह नज़ारा बहुत ही खूबसूरत था. उसके किनारे पर एक लड़की अपने भाई का इंतजार कर रही थी. जो नाव लेकर उसे लेने आने वाला था. वहीं दूसरी नाव एक भैंस को लेकर जा रही थी. यह बहुत शांत था और नर्मदा सुंदरता बिखेर रही थी.
आज आश्रम में हमने अपना खाना ख़ुद बनाया – दाल, चावल, रोटी और सब्जी.

सचिन की वापसी :

हमारी परिक्रमा के 15 वें दिन हमारे साथी सचिन को आवश्यक काम के कारण यह यात्रा बीच में छोड़ना पड़ा. लेकिन उसे विश्वास है कि वो जल्द ही वापस आने की कोशिश करेगा. यह हमारे लिए एक शाॅक की तरह था.
लेकिन मैं इसके लिए पहले से ही तैयार था. मैं पूरे दिन उसके बारे मे सोचता रहा. उसी की वजह से हम आज इस यात्रा पर थे. हम दोनों के बीच हमेशा कुछ सार्थक बात होती थी. बहुत कम समय हम मजाक या फालतू बातों में वक्त खराब करते. मुझे उसके जाने के बाद भी लग रहा था कि वो हमारे साथ ही है. शायद इस भावना के पीछे भी नर्मदा मैया कोई संकेत दे रही हो.
उसके जाने के बाद दूसरी बात जो मुझे परेशान कर रही है वो है खाने की. क्योंकि सचिन हमारी टीम का खास शेफ था. हम लोग तो उसके हेल्पर मात्र थे. हमारे साथ अब इटन और नीली भी थे. मुझे उनके खाने का ख्याल भी रखना था. मैं थोड़ा चिंतित था लेकिन फिर भी रात का खाना स्वादिष्ट बना. इससे मुझे आत्मविश्वास हुआ कि मैं भी अच्छा खाना बना सकता हूं. लेकिन इसमें सभी का समान योगदान था.

17 वें दिन हम लगभग 20 कि.मी.चले. उसमें से 14 कि. मी. चलने के बाद नीली ने हार मान ली. और फिर बाकि की दूरी एक बाइक वाले से लिफ्ट मांगकर पूरी की. अब हम केदारपुर गांव पहुंच गए है. फिलहाल रुकने के लिए एक मंदिर मिला है. रात का खाना पकाने के लिए एक ग्रामीण ने हमारी सहायता करी. उसने पूरी – सब्जी और खीर पकाई. खाना इतना अच्छा बना था और भूख भी लगी थी तो मैंने कुछ ज्यादा ही खा लिया. लेकिन क्या करुं? जब पूरे दिन चलने के बाद एक टाईम ही खाना मिलता हो. कुछ दिन से मेरे पैरों में छाले हो गए हैं. जब रुकता हूं तो बहुत दर्द होता है वहीं अगर लगातार चलता रहूं तो दर्द नहीं होता. नीली को भी तीन छाले पड़ गए हैं.
आज हमने 25 कि. मी. चलने का लक्ष्य रखा है. कल देखते हैं क्या हम शाम तक घनसौर पहुंच पाएंगे?

एंंडनोट : सचिन के जाने से मेरी एनर्जी और फीलिंग्स में उतार – चढ़ाव है. मुझे ऐसा लगता है जैसे वो अभी भी हमारे साथ ही है और आसपास किसी से बातचीत कर रहा है.

कभी-कभी मैं बहुत जड़ और बोरियत महसूस करता हूं. वहीं कभी-कभी बहुत खुश और कभी बहुत चुप. मैं उम्मीद मे रहता हूं कि कोई बाबा मिले और मेरे ज्ञान को बढ़ाए. लेकिन यह कम ही होता है. बहुत कम बाबा मिलते हैं जो चिलम के अलावा भी कुछ देते हैं. फिलहाल के लिए इतना ही. अब आशा है कि जल्दी ही जबलपुर मे अमृतलाल वेगड़ जी से मिलेंगे और कुछ नयी जानकारियां साझा होंगी.

(नर्मदा परिक्रमा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)

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