छत्तीसगढ़ डाॅयरी के कुछ पन्ने…
रायपुर : पहला दिन रायपुर के नाम रहा. किसी भी स्टेट की राजधानी से आप उस पूरे स्टेट का मिजाज़ जान सकते हैं. तो राजधानी रायपुर जो कि भविष्य की स्मार्ट सिटी भी है, से मुझे समझ आया कि यह थोड़ा मीडियम पेस बाॅलर की स्पीड वाला शहर है. मतलब न तेज न ज्यादा स्लो. बस अपनी मस्ती में चलता शहर. इंदौर से बहुत ज्यादा समानता होने के कारण कभी – कभी मैं इसे इंदौर का छोटा भाई भी बुलाता हूं.

चलिए अब आते हैं मुद्दे की बात पर यानी कि एक दिन में आप रायपुर में क्या धमाल मचा सकते हैं ?
अगर आप मार्निंग पर्सन हैं तो सबसे पहले उठकर तेलीबांधा तालाब पहुंचें. शहर के अंदर इससे अच्छा मार्निंग वाॅक और कहां हो सकता है. तालाब के साथ वाॅक के लिए यहां फुटपाथ बनाया है इसलिए इसे लोकल ‘मरीन ड्राइव’ भी कहते हैं. और हां साथ ही मोर रायपुर के साथ सेल्फी लेना ना भूलना. वैसे ईवनिंग में यह जगह कुछ ज्यादा हैपनिंग रहती है. क्योंकि उस टाइम इसके आस-पास के फूड ज्वाइंट्स और कैफ़े खुले होते हैं.

एक और जगह जो सुबह को और खुशनुमा बना देगी वो है बूढ़ा तालाब जिसे विवेकानंद सरोवर के नाम से भी जानते हैं. यहां तालाब के बीच में पार्क और विवेकानंद की विशाल प्रतिमा है. साथ ही यहां बोटिंग और वाटर स्पोर्ट्स का मजा भी लिया जा सकता है.

नाश्ता करके हम वापस अपने होटल लौट आए. थोड़ी देर आराम किया और आगे की प्लानिंग भी. फिर नहा – धो तैयार होकर गाड़ी को मोड़ दिया नया रायपुर की ओर.
नया रायपुर को पहली बार मैंने फ्लाइट से देखा था और तभी इस इंट्रीगेटेड सिटी से प्यार हो गया था. यहां की चौड़ी-चौड़ी सड़कें, सुनियोजित टाउनशिप, हरियाली, खूबसूरत लेक और पॉल्यूशन फ्री एनवायरमेंट इसे वर्ल्ड क्लास सिटी के बराबर का दर्जा देता है. नया रायपुर में स्थित सेंट्रल पार्क, जंगल सफारी, पुरखौती मुक्तांगन देखने लायक है. साथ ही अगर जेब में थोड़ा पैसा है तो मे फेयर रिजॉर्ट जाकर लेक साइड लंच/डिनर का लुफ्त उठा सकते हैं.

तो सबसे पहले हम पहुंचे नंदनवन जंगल सफारी. संडे था तो आज कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. किसी तरह लाइन में लगकर टिकट लिया और अंदर पहुंचे. लगभग 800 एकड़ में फैली सफारी में दो भाग हैं – पहला जंगल सफारी और दूसरा ज़ू सफारी. सफारी में चार सेक्शन हैं – शाकाहारी, भालू, बाघ और शेर. जिनको देखने के लिए स्पेशल बस के माध्यम से एक ट्रेंड गाइड के साथ जाना होता है. गाइड साथ ही साथ सफारी के बारे कई महत्वपूर्ण जानकारी भी देते जा रहा था. हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमें टाइगर दिखाई पड़ा. सफारी खत्म होने बाद हमें ज़ू के इंट्री गेट पर उतार दिया गया. बाकी ज़ू की तरह यहां पिंजरे नहीं बने थे बल्कि एक बड़ी खाई के माध्यम से जानवर और विजिटर के बीच दूरी रखी गयी थी. यहां हमें मस्ती करते हुए दो व्हाइट टाइगर दिखाई दिये. अन्य जानवरों को देखते हुए हम बोटिंग प्वाइंट पर आ गये. अब तक काफी थकान हो चुकी थी इसलिए बोटिंग का प्लान ड्रॉप कर हम खाडवा लेक साइड लगी बेंच पर बैठकर पानी में खेलती बत्तखों को देखने लगे.

सफारी से निकल कर हम मे फेयर लेक रिजाॅर्ट पहुंचे. जहां लेक साइड का नजारा देखकर लगता है कि हम किसी फिल्म के शूटिंग लोकेशन पर आ गये हों. खैर पेट पूजा के लिए पहले ही हमने लंच बुक कर रखा था. और जितना खुबसूरत यह लोकेशन है उतना ही लज़ीज यहां का खाना. मैं तो अंगुलियां चाटते रह गया. बुफे खाकर नींद तो आ रही थी लेकिन आगे अभी बहुत कुछ बाकी था.

अगला पड़ाव था पुरखौती मुक्तांगन. यह एक खुला संग्रहालय है, जहां पुरातन संस्कृति को संजोया गया है. यह परिसर बहुत ही सुंदर ढंग से हमें छतीसगढ़ की लोक-संस्कृति से परिचित करता है. साथ ही वनवासी जीवन शैली और ग्राम्य जीवन के दर्शन भी यहां होते हैं. इसकी बाहरी दीवार को देखकर ही मेरा मन खिल उठा. जिसमें सुंदर चित्रकारी से लोक – कथाओं को दर्शाया गया है. अंदर जाने पर आदमकद प्रतिमाएं आपको जीवंत लगती है. यहां से एक रास्ता ‘आमचो बस्तर’ की ओर जाती है, जहां बस्तर की लोक-संस्कृति को प्रदर्शित किया गया है. साथ ही आदिवासी कला और संस्कृति को जीवंत करते नृत्य, परंपराएं, लोक जीवन की झांकी प्रस्तुत की गयी है. इसे देखकर छत्तीसगढ़ की पुरातन विरासत हमारी आंखों में सदा के लिए बस गयी.

इसके बाद रुख किया महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय का. जहां छत्तीसगढ़ के इतिहास, संस्कृति और कला को संजो कर रखा गया है. यहां हथियारों के नमूने, प्राचीन सिक्के, मूर्तियाँ और नक्काशी आदि प्रदर्शित किए गए हैं, साथ ही आदिवासी जनजातीय परम्पराओं को प्रदर्शित करने वाले कई प्रादर्श यहां हैं. साथ ही आप यहां समय – समय पर होने वाले व्याख्यान, परिचर्चा और कल्चरल प्रोग्राम को भी देख सकते हैं. इसी के पास में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का इंफो/बुकिंग ऑफिस भी है. जहां से हमने अपने अगले डेस्टिनेशन की बुकिंग की और राज्य के अन्य पर्यटन स्थलों की जानकारी ली.
शाम हो चुकी थी और अब वक्त था पेट – पूजा का. और छत्तीसगढ़ में हों तो बिना छत्तीसगढ़ी व्यजंन चखे यात्रा अधूरी रहेगी. सो संग्रहालय के बगल में स्थित है – ‘गढ़ – कलेवा’. जहां ट्रडिशनल छत्तीसगढ़ी खाने के स्टाल महिला स्व – सहायता समूहों द्वारा चलाये जाते हैं. छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, इसलिए गढ़- कलेवा के ज्यादातर व्यंजन चावल से बनते है. यहां चीला,खाजा, बीड़िया, पिडीया, देहरौरी, पपची, ठेठरी, खुर्मी लोग बेहद पसंद करते साथ ही यहां पापड़ और कई तरह के अचार भी लोग साथ ले जाते हैं. तो अपनी छोटी भूख को शांत करने के लिए हमने चीला आर्डर किया. जिसको बनाने का तरीका लगभग डोसे जैसा ही है.

रात हो चुकी थी तो आराम करने के लिए वापस होटल आ गये. अगले दिन का प्लान हो चुका था. इसलिए सुबह जल्दी उठना भी था.
रोमिंग बाबा टिप्स :
- एक महत्वपूर्ण बात रायपुर में घूमते वक्त ध्यान रखनी चाहिए वो यह है कि सोमवार को अधिकतर टूरिस्ट स्पाॅट बंद रहते हैं.
- रायपुर लगभग सभी रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है. साथ ही एअरपोर्ट की कनेक्टिविटी सभी बड़ी सिटीज से है.
- सितंबर – अक्टूबर घूमने के बेस्ट सीजन है.
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