छत्तीसगढ़ डाॅयरी के कुछ पन्ने…
दूसरा दिन…
रायपुर से 110 किमी. की दूरी पर बसा है- डोंगरगढ़. एक छोटा कस्बा होने के बावजूद इसकी छोटी-छोटी पहाड़ियां, तालाब और हरियाली मन मोह लेती है. इसकी सबसे अलग बात यह है कि यह सभी धर्मों के धर्मावलंबियों को समान रुप से आकर्षित करता है. यहां एक पहाड़ी पर 2000 साल से भी पुराना माता बम्लेश्वरी का मंदिर है तो वहीं प्रज्ञागिरी पर बुद्ध प्रेम का संदेश दे रहे हैं. दूसरी तरफ चंद्रगिरी पहाड़ी पर तीर्थंकर चंद्रप्रभु त्याग और मानवता की सीख देते हैं तो कैलवरी हिल पर स्थित क्राॅस प्रभु ईसा की क्षमाशीलता का पाठ पढ़ाता है.

दूसरा दिन : रात की 06 घंटे की नींद के बाद शरीर एनर्जेटिक लग रहा था. रात को ही प्लान हो गया था, सो सुबह हम 05.30 बजे के लगभग अपने ट्रैवल डेस्टिनेशन – डोंगरगढ़ की ओर चल दिये. सुबह – सुबह रोड़ लगभग खाली था इसलिए ड्राइवर भैया माइकल शूमाकर बन गये थे. बीच – बीच में उनको टोक देता था कि उतनी ही स्पीड में गाड़ी चलायें जितनी वो जल्दी से कंट्रोल कर सकें. एक- डेढ़ घंटे के बाद चाय की जबरदस्त तलब लगी तो गाड़ी हाईवे किनारे एक छोटे से ढाबे पर टिका दी. फिलहाल हम एनएच – 06 पर थे जिसे कोलकाता – मुंबई हाईवे भी कहा जाता है. चाय खत्म कर हम आगे बढ़े. इस रुट में अगली बड़ी सिटी राजनांदगांव आती है. उसे क्रास करके हाईवे पर लगभग 14-15 किमी चलने के बाद हमें राइट की तरफ जाना था.

यहां से डोंगरगढ़ करीब 25 किमी दूर है. इस रास्ते पर आगे बढ़ते ही एक अलग चेंज देखने को मिलेगा. रास्ता थोड़ा संकरा और घुमावदार है. आसपास छोटी-छोटी पहाड़ियां और हरियाली थी.
डोंगरगढ़ का सबसे पहला स्पॉट प्रज्ञागिरी आता है. मेन रोड़ पर लगे बोर्ड से डायरेक्शन लेकर हमारी गाड़ी उस तरफ चल पड़ी. कुछ दूर चलने के बाद प्रज्ञागिरी के पार्किंग एरिया में गाड़ी पार्क कर दी. यहां आस-पास कोई भी नहीं दिख रहा था. पहाड़ी पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई गयी हैं. ड्राइवर भैया शायद थोड़ा आराम चाहते थे इसलिए वो गाड़ी में ही रुक गये. पानी की बोतल और कैमरा लेकर मैं सीढ़ियां चढ़ने लगा. बाद में गूगल ने बताया की कुल 225 सीढ़ियां है. ऊपर का नज़ारा बेहद शानदार था. एक चौकोर बेस पर स्वर्णिम बुद्ध की प्रतिमा ऐसे लग रही थी जैसे वो पूरे शहर को शांति प्रदान कर रही हो. इस समय यहां कोई भी नहीं था. एक निशब्दता और मौन चारों ओर फैला था. कभी मैं बुद्ध के शांत चेहरे को देखता तो कभी शहर को. मैंने कुछ तस्वीरें खींची और फिर एक चट्टान पर बैठ गया. जैसे कुछ जगहों के बारे में हम लिख नहीं सकते सिर्फ महसूस ही कर सकते हैं. ये जगह वैसी ही थी. महसूस करने और खुद को यहां की पॉजिटिव वाइब्स में डुबा देने की. यहां बैठे -बैठे कब आधा घंटा निकल गया मालूम ही नहीं पड़ा. चलते हुये एक बार फिर बुद्ध को नमन किया. नीचे उतर कर ड्राइवर भैया को जगाया जो शायद एक पावर नैप पूरा कर चुके थे. अगला डेस्टिनेशन था मां बम्लेश्वरी मंदिर.

हम प्रज्ञागिरी से वापस मेन रोड पर आ गए. मंदिर यहां से लगभग 02 किमी की दूरी पर है. रोड के दोनों तरफ फूल – प्रसाद की दुकानें और रेस्तरां है. वही एक रेस्तरां के साइड में कार पार्क कर हम आगे बढ़े. फिर मुंह – हाथ पर थोड़ा पानी मारा और चाय की चुस्की पर रेस्तरां मालिक से बात करने लगे. उसने बताया की बम्लेश्वरी माता देवी बगलामुखी का ही एक अवतार है. मैंने पूछा कि इस जगह का नाम डोंगरगढ़ क्यों है? तो उसने बताया की डोंगर का मतलब ‘पहाड़’ और ‘गढ़’ अर्थ है किला और यहां आस-पास काफी छोटे-छोटे पहाड़ है. एक और किवदंती जो यहां प्रसिद्ध है वो है कामकन्दला और माधवनल की प्रेमकथा. कामकन्दला, राजा कामसेन के राज दरबार में नर्तकी थी. वही माधवनल निपुण संगीतग्य हुआ करता था. लेकिन इस प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ. जिसके बाद राजा विक्रमादित्य ने यहां माता बम्लेश्वरी की पूजा-अर्चना शुरु करवाई. वही दूसरी किवदंती के अनुसार लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व यहा राजा वीरसेन का शासन था. वे नि:संतान थे. संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की. इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा. मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया. बाद में मदनसेन के पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली. कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे. तब यह नगर कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात था और इसे कामावती नगर या कामाख्या के नाम से जानते थे.

वैसे अधिकतर लोग डोंगरगढ़ माता बम्लेश्वरी के दर्शन के लिए ही आते हैं. और नवरात्रि में यहा अच्छी खासी भीड़ रहती है. और इस समय मंदिर 24 घंटे खुला रहता है. बाकि समय में मंदिर और उड़न खटौला (रोप – वे) सिर्फ दिन में खुलता है. यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र यात्री रोप-वे है. माता बम्लेश्वरी के दो मंदिर है जिन्हें बड़ी बम्लेश्वरी और छोटी बम्लेश्वरी के नाम से जाना जाता है. बड़ी बम्लेश्वरी माता 1600 फीट की ऊंचाई की पहाड़ी पर मंदिर में विराजमान है और छोटी बम्लेश्वरी माता नीचे वाले मंदिर में है. मंदिर के बारे में और अधिक जानकारी यहां से ले सकते हैं.
समय तेजी से निकल रहा था और धूप भी बढ़ने लगी थी. सो उसी दुकान से प्रसाद और पूजा सामग्री ले हम रोप – वे काउंटर पर टिकट के लिए लग गये. ज्यादा भीड़ नही थी. 80/-रु.मे आने जाने का टिकट मिल गया. वैसे ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी है. रोप-वे से नीचे का नज़ारा बेहद लुभावना था.

तलहटी में स्थित झील और शहर बहुत मनमोहन लग रहे थे. थोड़ा डर भी लग रहा था क्योंकि रोप-वे थोड़ा शोर कर रहा था. हम लगभग 10 मिनट में मंदिर के मेन गेट पर थे. मंदिर में मां की अद्भुत मूर्ति मन को शांत करने वाली है. यह छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी हैं. अनादिकाल से मां बम्लेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है साथ ही विजय का वरदान मिलता है. मुश्किलों को हर कर मां अपने भक्तों को मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाती हैं. मैं दर्शन के बाद थोड़ी देर वहीं रुककर नीचे के सीन को आंखों में कैद करता रहा. यहां से चंद्रगिरी पहाड़ी भी दिख रही थी. जिस पर जैनियों के तीर्थंकर चंद्रप्रभु का विशाल मंदिर निर्माणाधीन है. यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा दिगंबर जैन मंदिर होगा.

नीचे उतर कर अगली जगह जाने से पहले थोड़ा पेट – पूजा करना जरुरी था. गर्मागरम समोसे और चाय मिल गयी और क्या चाहिए था.

रेस्ट्रां में इस बार एक नन्हा मेहमान भी था. जिसे मैंने बिस्किट खिलाने की कोशिश की. वेटर ने बताया कि कुछ दिन पहले किसी गाड़ी ने इसको टक्कर मार दी थी. दोनों पैर घायल हो गये थे. लेकिन अभी यह पहले से ठीक हो गया है.
अगली जगह कैलवरी हिल्स थी. जहां पहाड़ी पर क्रॉस और चर्च स्थित है. हम गूगल मैप के दिखाये रास्ते पर चल रहे थे लेकिन एक जगह जाकर फंस गये. इसलिए मैप को ऑफ कर मैनुअल मोड मतलब कि राह चलते लोगों से रास्ता पूछते – पूछते हिल तक पहुंचे. पहाड़ी पर दूर से ही बड़ा सा क्राॅस दिखाई दे रहा था. पहाड़ी के नीचे पहुंच कर थोड़ी डर की फीलिंग्स आ रही थी.

क्योंकि आस-पास, नर-मादा, पशु-पक्षी कोई भी नहीं दिख रहा था. ऐसा लगा जैसे हालीवुड की कोई ‘द नन’ टाईप की मूवी का सीन हो. ड्राइवर भैया पहाड़ी की ऊंचाई देखकर पहले ही न जाने का मन बना चुके थे. एक ट्रैवल आत्मा होने के कारण मुझे तो जाना ही था. मैंने जीसस का नाम लिया वाटर बॉटल और कैमरा उठाया और चल पड़ा. सीढ़ियां चढ़ते वक्त मैं नीचे भी देखता जा रहा था और सोच रहा था कि कोई और भी शायद आ जाए तो मुझे साथ मिल जाएगा. पहाड़ी पर बीच-बीच में जीसस, माता मरियम और उनके जीवन से संबंधित मूर्तियां बनी थी. कुछ जगह कोट्स भी लिखे थे. सुबह से मैं दो पहाड़ियां चढ़ चुका था तो थोड़ी थकान लग रही थी. इसलिए थोड़ा रेस्ट करता, पानी पीता फिर आगे बढ़ता. लगभग 20-25 मिनट में मैं ऊपर था. यहां माता मरियम और जीसस की जीवंत मूर्ति थी. और ऊपर बड़ा सा क्राॅस.

छत पर कुछ आवाजें आ रही थीं. वहां पहुंचा तो तीन युवा थे जो एक्सरसाइज़ कर रहे थे. उनसे थोड़ी गप मारी और फिर एक दूसरे के फोटो क्लिक करने में मदद की. यहां से सिटी का नजारा बेहद खूबसूरत दिख रहा था. हरियाली, तालाब, नीला आकाश, ग्राउंड में खेलते बच्चे और चिड़ियों की चहचहाहट- सारे एक नयापन लग रहे थे. ऐसा लगा जैसे आज का दिन सबसे खूबसूरत दिन हो. थोड़ी देर बैठकर इन सबको इंजॉय किया.
इस यात्रा का अगला पड़ाव था छोटी बम्लेश्वरी माता का मंदिर. यह मंदिर शहर के बीच ही स्थित है जहा आसानी से पहुंचा जा सकता है. मंदिर काफी भव्य और आकर्षक है.

अब दोपहर हो चुकी थी और मुझे वापस रायपुर भी लौटना था.साथ ही अगले दिन की प्लानिंग भी. मुझे लगता है कि शायद यह भारत की पहली ऐसी सिटी होगी जो अलग-अलग धर्म के आराधना स्थलों को इतने अच्छे से दिखाती है. इस छोटे से कस्बे का आत्मीयता भाव, पवित्रता,शांतिपूर्ण वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य आपके दिल में अमिट छाप छोड़ देता है. जो छत्तीसगढ़ घूमने आए उन्हें यहां एक बार जरुर आना चाहिए. यहां की पाॅजिटीव वाईब्स हमेशा आपको याद रहेगी. तो अब वक्त हो चुका था सिटी ऑफ ब्लिस को नमस्ते करने का.

ये दूसरे दिन की यात्रा यही खत्म होता है और अगले लेख में तीसरे दिन की यात्रा जरुर पढ़िएगा.
#रोमिंग बाबा टिप्स :
* एक महत्वपूर्ण बात डोंगरगढ़ में घूमते वक्त ध्यान रखनी चाहिए वो यह है कि दोपहर में मंदिर और रोप-वे बंद रहते हैं इसलिए समय का ध्यान रखें.
* डोंगरगढ़ रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है. यह हावड़ा – नागपुर मुंबई लाईन पर है. इसका नजदीकी एयरपोर्ट एवं बड़ी सिटी रायपुर है.
*यहां पर स्टे के लिए छोटे होटल आसानी से मिल जाते हैं. और घूमने के लिए ऑटो भी ले सकते हैं.
* यहां मानसून के बाद का समय घूमने के लिए सबसे अच्छा है.
छत्तीसगढ़ डाॅयरी अगर अच्छी लगी तो लाइक, शेयर, कमेंट करें और कोई सवाल हो तो ज़रूर पूछें.
Read Also: छत्तीसगढ़ में… छह दिन…
Read Also: ट्रिप यादगार बनाने के लिए बहुत काम के हैं ये 5 टिप्स
Read Also: कम खर्चे में घूम सकते हैं ये 5 हिल स्टेशन
Read Also: माजुली: भारत में एक खूबसूरत रिवर आइलैंड
Read Also: पहाड़, झरना और बादलों का स्पेशल कॉम्बो है ये जगह
(आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं. अपनी राय भी हमसे शेयर करें.)
Bahot hi sundar varnan! Acha laga padh ke…:)
https://nanchi.blog/
LikeLiked by 1 person
शुक्रिया 🙏
LikeLike
अति सुंदर और रमणीय यात्रा का वृतांत करते हुए हमें हमारे स्थान पर ही डूंगरपुर का संपूर्ण दर्शन करा दिया ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आप ऐसे ही सुंदर सुंदर मनो रमणीय स्थानों का भ्रमण करें और सभी को इनका लाभ पहुंचाएं
अति सुंदर अति मनमोहक यात्रा
LikeLiked by 1 person
शुक्रिया.. पढ़ते रहे roamingbaba.com
LikeLike
आपके लेख को पढ़कर ऐसा लगा जैसे हम भी आपके साथ इस सफ़र में है , जिस खूबसूरती से आपने इसे लिखा है वो काबिले तारीफ है
आपके लेख और जगहों का वर्णन हमें बहुत पसंद आता है
यु ही खुशनुमा माहौल बनाये रखिये और लेख लिखते रहिए घूमिये और घुमाइये
LikeLiked by 1 person
हम आप सभी रीडर्स के बहुत शुक्रगुज़ार है..रोमिंगबाबा का साथ बनाए रखिए.
LikeLike
Beautiful…
LikeLiked by 1 person