
कोटद्वार, हां वही लैंसडाउन के रास्ते में देखा है? ऐसा क्या है ख़ास इस आम सी जगह में?
मैं घुमाती हूं कोटद्वार, पहाड़ों की तलहटी में बसा एक छोटा सा नगर. लेकिन थोड़ा इतिहास में चलें? जिससे पता तो चले कि ये जगह ख़ास क्यों है?
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में करीब 52 छोटे-छोटे किले यानी कोट हुआ करते थे और उन तक पहुँचने का द्वार था कोटद्वार. पहाड़ और मैदानी इलाकों के बीच के व्यापार का मुख्य केंद्र रहा है. गढ़वाल से आने वाली लकड़ी, अनाज, फल इत्यादि की एक बड़ी मंडी हुआ करती थी यहां.
अब वापस आते हैं आज के समय में. देखने में सरल सा दिखने वाला छोटी छोटी सड़कों, दुकानों, मकानों और ट्रैफिक में उलझा हुआ यह नगर, ऐसा क्या ख़ास है आज यहां?
यात्रा की शुरुआत दिन की शुरुआत से करते हैं. यहां सुबह आंख खुलती हैं चिड़ियों की चहचहाहट से, सिद्धबली की आरती से और मस्जिद की अज़ान से. और यहां एक खूबसूरत चर्च और एक गुरुद्वारा भी है.

खोह नदी के किनारे बसा यह छुपा रुस्तम, दो बड़े ही खूबसूरत जंगलों को जोड़ता है. मतलब कोटद्वार की एक तरफ जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व है तो दूसरी तरफ राजाजी नेशनल पार्क. एक तरफ बाघ का राज है तो दूसरी ओर हाथियों का कॉरिडोर.
जिम कॉर्बेट जाने का एक द्वार कोटद्वार से हाल ही के दिनों में बना है और जल्द ही पर्यटकों के लिए खुलने वाला है. कॉर्बेट के बढ़ते सैलानियों को देखते हुए पार्क के गिर्द कोटद्वार, मोरघाटी, हल्दू पड़ाव और पखरों में फॉरेस्ट गेस्ट हाउस तैयार किये गए हैं और प्राइवेट रिसॉर्ट और होम स्टे का भी अच्छा विकल्प यहां मिलता है.
दिल्ली और आस-पास से वीकेंड के लिए निकलने की यह एक बढ़िया और आरामदेह जगह है. एक सीधी सड़क नजीबाबाद से ऊपर लैंसडाउन को कोटद्वार के बीच से निकलती है. थोड़ा ऊपर निकलने पर नदी के किनारे एक छोटी सी पहाड़ी पर है प्रसिद्ध सिद्धबली मंदिर. कुछ 70-80 सीढ़ियां हैं मंदिर के लिए.
सिद्धबली मंदिर सड़क के दाहिनी ओर नदी के किनारे हैं. मंदिर से कुछ पहले ही एक सड़क बायीं ओर जाती है. यहां से कुछ 22-23 किमी दूर है चरक डांड (गढ़वाली में डांड जंगल को कहते हैं).

कहते हैं महर्षि चरक का आश्रम यहीं था. आज भी यहां 5000 साल पुराना बांज (Oak) का एक पेड़ है और उतनी ही पुरानी महर्षि की खरल (जिसमें जड़ी बुटियां पीसी जाती थीं).
बुरांश (Rhododendron) के पेड़ों से भरा यह एक खूबसूरत हरा भरा जंगल है. गर्मियों में बुरांश के फूलों की लाली यहां अलग ही छटा बिखेरती है. वैसे तो यह पक्की सड़क है, पर यदि आप कोटद्वार में ही रुके हैं तो सुबह की सैर के लिए यह एक अच्छी जगह है.
ध्यान रहे यह इलाका एलीफैंट कॉरिडोर में आता है तो अक्सर यहां हाथी दिख जाते हैं. इसी सड़क पर कुछ 2-3 किलोमीटर ऊपर जाने पर अच्छे व्यू पॉइंट्स हैं, जहाँ से नीचे पूरे शहर का नज़ारा दिखता है. एक तरफ भरा पूरा शहर और नदी तो दूसरी ओर घना हरा-भरा जंगल. और कोलाहल करती चिड़ियाँ.

अब शोर की बात चली है तो थोड़ा बाज़ार की तरफ चलते हैं. वापस नीचे शहर के बीच, मुख्य सड़क से छोटी छोटी गलियों और सड़कों में. बस इसी परिधि में यहां का रेलवे स्टेशन भी है बस अड्डा भी और पूरा बाज़ार भी.
बाज़ार में सड़क के किनारे बिकती ऊपर पहाड़ से आयी हरी सब्ज़ियां, पहाड़ी गोल मूली, तैड़ू (गीठी) और पोस्ट ऑफिस के बाहर ठेलों में बिकते मीठे पहाड़ी अखरोट.
इनके इलावा दुकानों में कई पहाड़ी दालें, राजमा, भट्ट इत्यादि, वो भी आर्गेनिक सुदूर पहाड़ी गांवों से आयी हुई. भांग के बीज में बने आलू के गुटखे खाये हैं, या फिर भांग के बीज की चटनी? वो भी मिलेंगे यहां.
अब खाने की बात हो और मिठाई न हो ऐसे कैसे? तो सिद्धबली स्वीट्स या टूरिस्ट स्वीट शॉप से बाल मिठाई ले जाना मत भूलियेगा.
आगे फिर किसी नयी जगह मिलते हैं.
(यह लेख आस्था डबराल ने अपनी यात्रा के अनुभवों पर लिखा है. आस्था पेशे से डिज़ाइनर हैं और दिल से घुमक्कड़.)
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