वो दुनिया में अपने नियत समय से दो महीने पहले आ गया..
उसकी दो बहनें और छह भाई थे..
उसे लोगों ने कलुआ, तीतर पहलवान कहा..
पेट के लिए वो वॉचमेन भी बना..
बेशक वो ज़मीदारों के खानदान से था लेकिन उसके अब्बू की साइकिल की दुकान थी..
बॉलीवुड उसको ठगता रहा..
मुंबई उसे रुलाता रहा..
कौन था वो?
लोग आज उसे नवाजुद्दीन सिद्दीकी के नाम से जानते हैं.
क्या 209 पन्नों में किसी की ज़िंदगी को समेटा जा सकता है?
किताब का नाम – An Ordinary life
लेखक – नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी और रितुपर्णा चटर्जी
ये किताब नवाज़ की ज़िंदगी के उन पन्नों को खोलती है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
हम सबने नवाज़ को वासेपुर के फ़ैजल, बदलापुर के लायक और सैक्रेड गेम्स के गायतोंडे के किरदार में तो खूब तालियां दी हैं लेकिन अपनी असली लाइफ में वो इससे भी ज्यादा तालियों के हकदार हैं. एक ज़मीदार के खानदान से संबंध रखने के बावजूद उनके पिताजी को खेती, साइकिल रिपेयर और इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाकर अपना गुजारा करना पड़ा.
READ ALSO: एक संकोची लड़का और खुले दिमाग़ की लड़की का साथ
नवाज ने एक्टिंग में देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थान एनएसडी से डिग्री ली थी. लेकिन बॉलीवुड उनको छोटे-छोटे रोल के लिए भी रुलाता रहा. नवाज की कहानी हर उस स्ट्रगलर की कहानी है जो छोटे कस्बों से आकर मेट्रो मे अपनी जगह बनाने की कोशिश में है. उसका भी कोई सहारा नही था. और कहते हैं कि बॉलीवुड में तो बिना गॉडफादर के कोई आपको पास भी नहीं फटकने देता. ऐसे माहौल में नवाज ज़िंदा रहा और सिर्फ़ न केवल ज़िंदा रहा बल्कि करोड़ों लोग में अपनी अलग पहचान बनायी. यह लेख नवाज के उसी जज्बे को एक सलाम है.
इस किताब में कुल चार भाग है जो नवाज की ज़िंदगी के अलग-अलग हिस्से को दिखाते हैं. पहले अध्याय में नवाज़ के गांव और बचपन की यादों को समेटने की कोशिश की गई है. इसलिए इस भाग का नाम बुढाना – जो कि उनके गांव का नाम है, रखा गया है.
अध्याय एक – बुढाना
‘वेस्टर्न यूपी का एक कच्चा मकान सूर्य देवता के ताप से भट्टी की तरह सुलग रहा है. महीना मई का है जब उत्तर भारत में लू नाम की भयंकर गर्म हवाएं चलती हैं. एक शख्स उसी मकान के एक कमरे की बाहरी दीवारों पर पानी डाल कर गर्मी से जूझ रहा है. उसी कमरे में एक औरत लेबर पेन से लड़ रही है. वो लड़ने के साथ – साथ अपने होने वाले बच्चे को कम्फर्ट भी फील कराना चाह रही है.
लगभग दो घंटे बाद उसका यह संघर्ष खत्म हुआ और नन्हा अपने नियत समय से दो महीने पहले दुनिया में आ गया. उसकी आंखें रक्तरंजित हैं और वो आंखें आज तक वैसी ही लाल हैं. वो अपने अम्मी-अब्बू का दूसरा बेटा था. लेकिन उसका बड़ा भाई कम उम्र में ही चल बस था. अम्मी-अब्बू ने मुझे ख़ुदा की रहमत माना और इसलिए नाम दिया नवाज़.
Read Also: देश के सर्वश्रेष्ठ युवा लेखक की कविताएं…
दुनिया में जल्दी आने का फायदा ये हुआ कि मैं अभी तक दुबला ही रहा. मेरे अम्मी अब्बू इस दुबलेपन से बहुत मायूस रहते. उन्होंने मुझे भैंस का दूध पिलाना शुरु किया. लेकिन उसका भी कोई असर नही हुआ.’ इस भाग मे तीतर पहलवान, अम्मी, अब्बू, ऑफ लव लेटर एंड काइट वाले हिस्से अच्छे बन पड़े हैं.
भाग दो में नवाज की जवानी और कॉलेज लाइफ का जिक्र किया गया है. इसमें उनकी एकतरफा लव स्टोरी, कॉलेज की मस्ती, नोएडा में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी और उसके बाद पैसा कमाने का संघर्ष दिखाया गया है. इसी भाग में जिक्र आया है कि उन्हें अपनी एक प्रोफेसर के एकतरफा मोहब्बत हो गयी थी. लेकिन इस समय तक वो एक्टिंग को लेकर सीरियस हो गये थे.
भाग तीन का नाम मुंबई रखा है. इसमें नवाज का शुरुआती दौर का संघर्ष, रिलेशनशिप, कैरियर में नया मोड़ आना शामिल है. रिलेशनशिप में नवाज का निकाह होना फिर टूटना और नये रिश्ते का बनना इस भाग में शामिल हैं. इसमें शोरा, माय मिराकल और शम्स, माय गॉर्जियन एंजल वाले चैप्टर अच्छे बने हैं.
भाग चार में एक्टिंग के बारे में नवाज की राय और अनुराग कश्यप से ट्यूनिंग अप को बताया गया है.
अब किताब के कंटेंट की बात करें तो मुझे थोड़ा मायूसी होती है. शुरुआत तो इसकी अच्छे से होती है लेकिन बाद में यह पकड़ खो देती है. कुछ चैप्टर अच्छे हैं. लेकिन ऐसा किताब में कहीं भी नहीं लगता कि एक के बाद दूसरे चैप्टर में इंटरेस्ट जागे. बस आपको लगता है कि नवाज को पढ़ना है तो पढ़ते चले जाते हैं. भाषा का अच्छा इस्तेमाल हुआ है. कहीं-कहीं पर सिचुएशनल कॉमिक मिल जाता है. जो आपको हंसा देगा. पहले भाग के शुरुआत के दो चैप्टर मेरे पसंदीदा है. और कॉलेज लाईफ वाले भी अच्छे हैं.
तो किताब कुल मिलाकर नवाज़ की ज़िंदगी के उस फेस को दिखाती है जिसको सिर्फ़ नवाज़ खुद या उनके करीबी जानते हैं. नवाज़ के फैन्स के लिए ये एक अच्छा तोहफा है. यह किताब सिर्फ अंग्रेजी में ही उपलब्ध है.
ये भी पढ़ें:
घुमंतू लड़की-4: ये अनुभव मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी
अगर आप सुकून की तलाश में हैं तो ये जगह बिल्कुल सही है
अकेले घूमने निकली लड़की के घुमंतू किस्से
एक आश्रम से दूसरे आश्रम की उम्मीद में…
जब रास्ता भटके और अंधेरे में एक आवाज सुनाई दी ‘नर्मदे हर’
(आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं. अपनी राय भी हमसे शेयर करें.)
One thought on “एन ऑर्डिनरी लाइफ आॅफ एन एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी पर्सन!”